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अध्यात्म बारहखड़ी
अणुखंधा सव तृहिं प्रकास, तू न अणूं नहि खंधा । केवल दर्शन ज्ञान विकास, विभू विभूति प्रबंधा ॥ ६२ ॥ अन्न औषधी शास्त्र जु अभया, दोन अनेक बताबें । अति दांनी अति ज्ञांनी सदया, सकल सुरीति जतायें ॥ ६३ ॥ अन्न पान की छांण बीण विधि, सकल अचार बखांनैं । नहीं अहार बिहार महारिधि रहे अनंतर थानें ।। ६४ ।। अविधि न अवधि न अव्याबाधा विधि वुधि हू नहि पांवें । रहित अनात्तम भाव सुसाधा, बुद्धि परें जु वतांवें ॥ ६५ ॥
जोगीसा ॥ ६६ ॥
असुधि असुधता भाव न जांमैं, भजैं अवस्य मुनीशा । नहि भूलैं अवसांन दसा मैं पद पंकज अति सुगंध पद अब्ज तिहारे, तैसे नहि चरन सरोज महारसवारे, अलि हैं इंद अमर सबै कहिवे के अमरा, तू अमरा जो न मरा। अनुमति अमति वखांने कैसें, कहि न सर्के पति अमरा ॥ ६८ ॥ अटल अटंकित है जु अडंकित, असंक अकंप अपंका। अबध अबाधक अति हि निसंकित, सरल स्वभाव अवंका ॥ ६९ ॥
अरविंदा ।
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मुनिंदा ॥ ६७ ॥
छंद मोतोदांम
अलेष अभेष अलक्ष अपक्ष अशेष विशेष अनक्ष प्रतक्ष । अशुन्य अपुन्य अपाप अताप सुशुन्य सुपुन्य अशाप अचाप ॥ ७० ॥ अरोप अकोप अजोग अभोग अनोप अलोप अरोग असोग | अदिक्ष अशिक्ष, अलेप अछेप, सुचक्ष सुलक्ष सुदक्ष अषेप ॥ ७१ ॥
अकांम अनांम अराग अदोष, अधांम सुधांम विराग विमोष । अमोह अदोह अनेह अगेह, अलोभ अषोभ अदेह विदेह ॥ ७२ ॥
अदीन अनीन नही जु अधीन,
अच्छीन प्रवीन नही सुअलीन। अदंभ अचंभ अलोग अलिंग, सुवंभ विद्रुभ सजोग इकंग ॥ ७३ ॥