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अध्यात्म बारहखड़ी
सप्त विसन अर हरि भय सप्ता, अतीचार पांचौं अलिप्ता ए अठयासी आधे टारो, अनयांप्रस्व भेटनित .. तारों ।। ४९.!! .. अठ्यांणव हूँ जीव समासा, अठत्तीसनि के भेद प्रकासा । मूलभेद त्रस थावर प्रांनी, तिनके भेद सकल ए जांनी ॥५० ।। इनको रक्षक करि प्रभु मोकौं, अपनौं वास देह पद धोकौं। अट्ठोतर सौ ऊपरि स्वामी, मणियां माला के अभिरामी॥५१॥ तेरौ मंत्र जु पावै कोई, सो पावै शिव तोमय होई। तू अनेक अर एक असंख्या, प्रभू अनंतानंत अकंख्या ॥५२॥ वर्णन कौलग कीजै सांई, अव्यय पद दै अटल असाई। अनाकार अविगत सुअनाश्री, भक्त वच्छिलत है जनिजाश्री ।। ५३ ।। अवर अनर्ह अयोज़ अपूज्या, अर्ह योज्ञ तृ पूजा योज्ञा। अर्हन अरिहंता अरिजीता, श्री अरहंत अतित अजीता ॥५४ ।। अविवादी तृ स्याद जु वादी, द्वयवादी अध्यातमवादी। अस्ति नास्ति अर नित्य अनित्या, सव नय भासे ईश्वर नित्या ।। ५५ ।। अनाहार अनिहार अवस्त्रा, प्रभु अनायुध रहित जु शस्त्रा। अभू अभूषन विभृ अदूषा, अहो दिगंबर प्पास न भूषा ।। ५६ ।।
- छंद - अगणित जीवा तारे तेंही, अगणित कर्मा टारे। अगणित भावा हैं तोमैं ही, अगणित परणति धारे॥५७।। अहो अरण्य वसैं मुनिराया, कैसैं बचन मन काया। राया तुझसों नेह लगाया, तूं ही अमाया काया॥५८ ।। अहोरात्रि ध्यानै जोगीसा, भोगीसा गुन गांवै। अमित अहोकर तेज अतीसा, महा निसाहर भावै॥५९।। अर्चित तेरी अर्चा अर्च, चरचा तेरी चरनै । अमर अपछरा सुर धरि सुरचैं, साधु परचि जग विर3 ॥ ६० ।। अकाल अनेहा हरइ जु देहा, सब जीवनि की देवा। काल रहित करि प्रभू विदेहा, दै साहिब निज सेवा॥६१ ।।