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अध्यात्म बारहखड़ी
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मणि सुवर्ण मैं क्रांति जो, तिन से भिन्न न जोय।
त्यौं वह दौलति द्रव्य तें, है अभिन्न रस सोय।। ४२ ।। इति क्षकार संपूरणं इति श्री भत्तयक्षर मालिका अध्यातम बार षडी नाम ध्येय उपासना तंत्रे सहश्रनाम एकाक्षरी नाम मालाद्यनेक ग्रंथानुसारेण भगवद्भजनानंदाधिकारे आनंदराम सुत दौलति रामेन अल्प बुद्धिना उपायनिकृते यकारादि क्षकारांत नवाक्षर प्ररूपको नांम पंचम परिछेद ॥ ५ ।। इति ग्रंथ संपूरणं॥
- दोहा - अक्षर मात्रा नादि की, करता सरवगि देव। प्रतिकरता गनधर मुनी, परंपराय अछेव ॥१॥ सर्व ग्रंथ अक्षरमई, मात्रा रूप वखांना अक्षर मात्रा जे लखें, ते पां| निरवान ॥२॥ नाम अनंत अनादि के, अक्षर मात्रा रूप। संसकृत प्राकृत्त मैं, गां● मुनिजन भूप ।। ३ ।। या युग मैं बुधि घटि गई, नहि ग्रंथनि की ग्यान। संसकृत प्राकृत कौ, विरला करै बखांन ।।४।। उदियापुर मैं रुचि धरा, कैयक जीव सुजीव । प्रथीराज चतुर्भुजा, श्रद्धा धरहि अतीव ।। ५ ।। दास मनोहर अर हरि, द्वै वखता अर कर्ण। केवल केवल रूप को, राखें एक हि सर्ण॥६॥ चीमां पंडित आदि ले, मन मैं धरिउ विचार । बारषड़ी है भक्तिमय, ज्ञान रूप अविकार।।७।। भाषा छंदनि माहि जो, अक्षर मात्रा लेय। प्रभु के नाम वषांनियें, समुझे बहुत सुनेय ।। ८॥ इह विचार करि सव जना, उर धरि प्रभु की भक्ति। योल दौलति राम सौं, करि सनेह रस व्यक्ति ॥९॥