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अध्यात्म बारहखड़ी
iver नाग नागपति तरी, शुन गांवें अति रसना । वेड सुधा तु परसादें, तू अति अमृत विसना ॥ २६ ॥ तू हि अभिन्न व्यापक स्वामी, निजगुन पर्यय मांही । भिन्न व्यापको सकल ज्ञेय मैं, राग दोष मैं नांही ॥। २७ ॥
तातै विश्रु सदाशिव तू ही, ब्रह्म गणेश महेशा । सुगतं बुद्ध दिनकर तमहर है, शक्ति स्वरूप जिनेशा ॥ २८ ॥ क्षेप विक्षेप न तेरै कोई, करै कर्म विक्षेपा । तत्ववोध के अर्थ प्रकासै, नय परमाण निक्षेपा ॥ २९ ॥
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छंद पद्धड़ी
क्षेत्र देह क्षेत्री जु जीव, तू जीवनाथ है जगत पीव क्षेत्र लोक क्षेत्री हि तू हि तू सर्वक्षेत्र व्यापी प्रभू हि ॥ ३० ॥ तू देव क्षेम शासन सुमूल, तू क्षैम रूप त्रैलोक्य चूल | क्षोणीधर भूधर तू दयाल, पृथ्वी अनंत तेरै विशाल ॥ ३१ ॥ क्षोहणिदल सेना गुन अनंत, अक्षोभ तू हि राजै प्रसंत । तू सर्व क्षोभ हर बोध धार, देवाधिदेव स्वामी अधार ॥ ३२ ॥ तू क्षौम रहित भूषन खितीत, है देव दिगंबर अखिल जीत । मुनि क्षौर विवर्जित लुंच केश, ध्यांवें जु तोहि धरि नगन भेस ॥ ३३ ॥ संत दंत शांती स्वरूप, तू क्षाति ( क्षति) विवर्जित लोकभूप । है क्ष क्ष क्ष क्ष क्षः विभास, तू मंत्री मंत्र स्वरूप भास ॥ ३४ ॥
अथ द्वादश मात्रा एक कवित्त मैं ।
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धर्मनि मैं आदि क्षमा जु नाथ, तू उत्तम क्षम भासक अनाथ । तेरे न नाथ तातैं अनाथ, त्रैलोक नाथ अतिभाव साथ ॥ ३५ ॥
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सवैया ३१
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क्षमा कौ स्वरूप तू हि क्षायक स्वरूप नाथ,
क्षिष्ट परै रागादिक तेरे ही सु ध्यांन तैं ।