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अध्यात्म बारहखड़ी
तजि सैथल्य स्वभाव जे, द्रिढ चित्ता है धीर। ते इंह सैली लहैं, स्वरस रसीले वीर।। १२० ।।
... छंद मोती दांग - तु ही जिन सोम सुद्रिष्टि प्रशांत, महा अति सोभित है अतिकांत। मु सोलहवांन कहा जु सुवर्ण, तु ही अतिवान अनंत अवर्ण ।। १२१॥ नहीं कछु सोच न सोक न रोक, तु ही सुप्रसन्न महागुन थोक । तु ही इक सोधउ साधनि सत्य, लष्यौ परपंच सवै हि अनित्य ।। १२२ ।।
- दोहा - सोहं सोहं धुनि सुनें, जग धंधा छिटकाय । तेई तेरौ पंथ लोह, पावै चेतनराय ।।१२३॥ सौरा शैवा सौगता, तो विन शिव न लभंत। सौख्य मई गुन निधि तु ही, तो कौं साध चहत ।। १२४॥ सौम्य तु, ही अति सौम्यता, तेरी दीन दयाल । अति सौंदर्य अपार तू, अति सौजन्य रसाल।।१२५ ।। तेरे सौंज अपार है, अति सौहार्द सुरूप। अति सौरभ्य अलभ्य तू, ज्ञान लभ्य चिद्रूप॥ १२६ ।। सौध तिहारो लोक सिरि, निज स्वभाव हैं सौध । सौध तिहार जेय सव, सव को सौंध असौथ ॥१२७ ।। अति सौभाग्यमई तु ही, कहिये को लग नाथ। सौदामिनी सि जगत छति, नजि मुनि लें तब साथ ।। १२८ ।। सौदामिनी विजुरी हि सो, भवमाया भकभूर। तेरी भूति अनश्वरा, अति अनंत भरपूर ।। १२९ ।।
- सवैचा तेइसा ॥ २३ ॥ - संबर रूप अरूप अनूपम संचम धारक तू अति भारी। संवर निर्जर मोख तु ही इक आश्रव बंध न तू अविकारी ।