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अध्यात्म बारहखड़ी तू ही सर्व सूचै सदानंद सांई, प्रभू तू हि चिद्रूप रूपो गुसांइ । हरै पंच सूना दयापाल तू ही, तु ही शुद्ध अध्यात्म रूपो प्रभू ही।।१११॥ महासूत्र भासी महातंत्र स्वामी, तू ही सूतबंधो असूत्रो अनामी । तु ही देव सृधौ तुझे सर्व सूझै, सदा सूधि और तु ही सर्व ठूझै ( बूझै ) ॥ ११२॥ इहै जीव सूतौ महानीद मांही, जगावै तु ही देव संदेह नाही। स्वतत्व प्रसूती तिहारी सुभाषा, महा ज्ञान वैराग्य रूपी सुसाषा ।।११३।।
-- सोरता - मधु मांसादि भौं हि, ते सठ सूतिग रूप निति। करुणाभाव लखें हि, भक्ति पंथ तेई लहै ।। ११४ ।।
... छंद त्रिभंगी - प्रभू तू हि यथेष्टो, विभु अति प्रेप्टो है जु स्थेष्टो, थिर देवा। गुन सेना को पति, अति हि महाछति, एकाकी अति, घर देवा। कवहू नहि स्वेदा, तू हि अखेदा, परम अभेदा, अति सेना। मुनि धारहि सेवा, हौं हि अछेवा, तू जगदेवा, अति देना।।११।५।। नहि स्वेत जु कृष्णा, तू अति विश्ना, जिनवर जिश्ना, अति नामा। इक सेवित तृ ही, सर्व समूही, अतुल प्रभू ही, अतिरामा । तू ही भव मेता, ज्ञान जनेता, तत्व प्रणेता, जगराया। तू विप्र सुधार, क्षत्रिय तारै, सेठ उधार, शिव दाया॥११६ ।।
- दोहा - तु सेय भवि जन तिरै, जगतारक तु देव । संस सुरेस नरेस सहु, धरहि तिहारी सेव॥११७॥ सेरी भव वन मैं इहै, अध्यातम सैली हि। इह सैली पायें प्रभू, रहै न वुद्धि मैली हि॥११८ ।। या सैली करि शिव लहैं, भव वन की जल देय। सैंण तिकेहि जु इह धेरै, लखिक सब जग हेय।। ११९॥