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________________ अध्यात्म बारहखड़ी दोहा श्रीजु कहैं संपति कहैं, कमला कहैं निसंक । भाषा मैं दोलति कहैं. निज सत्ता जू अकंप ॥ ५२ ॥ " — इति श्री अक्षर संपूर्ण आगें अकार स्वर का व्याख्यान करै है । I - — लोक अनादि निधनं वंदे, स्वधनं धन दायकं । सुभक्षं लक्षणोपेत मम रांम रमीश्वरं ॥ १ ॥ — — सोरठा अ कहिये श्रुति मांहि, हरि हर कौ इह नांम है। तो बिनु दूजौ नांहि, हरि हर जिनवर देव तू ॥ २ ॥ - २१ छंद बेसरी अणीयांन अणु हू तैं स्वामी, महीयान नभ हू तैं अतिनांमी । अमल अनूपम प्रभु चिद्रूपा, अकल अरूप भूप सद्रूपा ॥ ३ ॥ = अचल अमूरत अमृत कृपा, अतुल अनंत सुमूरत रूपा । अध्यातम अति शुद्ध स्वरूपा, अनुभव रूपी तत्त्व प्ररूपा ॥ ४ ॥ अति अनंत गति देव अजीता, भव संतान अनंत विजीता । अर्द्ध मात्र नांही अर कोई, अति निरवैरी अति छति होई॥ ५ ॥ अर्द्ध जु नारीश्वर तू व्यक्ती, नांम नांम गुन गुन मैं शक्ती । अमित चक्षु तू ईश्वर स्त्रिष्टी अति सुपक्ष तू केवल दृष्टी ॥ ६ ॥ अतुल पराक्रम धारी राया, अमन अतिंद्री ज्ञान सुभाया । अति अनंत सुखपिंड अखंडा, अर अपिंड परचंड अदंडा ॥ ७ ॥ अपर प्रकाश अनंत विलोकी, लोकालोक लखे अवलोकी । अचल लब्धि को तू ही ईशा, प्रभू अयोनीसंभव (तू) धीशा || ८ || अकषाई तू अतिहि पुनीता, अनगारा ध्यांवें सुविनीता । दांन अनंत अनंत सुलाभा, भोग अनंत अनंत महाभा ॥ ९ ॥
SR No.090006
Book TitleAdhyatma Barakhadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal, Gyanchand Biltiwala
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages314
LanguageDhundhaari
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size3 MB
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