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अध्यात्म बारहखड़ी
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कहैं जु स्वापतेय द्रव्य, द्रव्य तू चिदातमा, ..... ... सतत्य सार है अपार इस तू गुणातमा॥४३ ।।
तजेहि स्वाद सर्व ही सु पंच इंद्रियोद्भवा,
करे सुधीर चित्त जे विनासई मनोद्भवा। जर्षे हि सानुकूल होय तोहि सौं जतिंद्रिया,
भजेंहि तोहि सात्विका तिके हि है अतिंद्रिया॥४४॥ नही कदापि सात्विका न राजसा न तामसा,
तु ही अनादि शुद्ध रूप देव है महारसा। मुनिंद साहसीक हैं अरण्य के निवासिया, ___ अहोनिसा र₹ जु तोहि भक्ति भाव भासिया॥ ४५ ॥ तु ही जु सारथी प्रभू चलावई स्वयंत्र कौं,
स्वभाव रूप यंत्र है, तु ही धेरै स्वतंत्र कौं। न रावर सुदास कौँ कदापि साप काटई, ___ न रावरे जनांनि कौं भूपाल क्रापि दाटई ।। ४६ ।।
न रावरे सुदास के कदापि चौर पैसई, ___न रावर जनांनिकै सुचित्त भ्रांति बैसई। न रावर जनांनि कौं कदापि कोई पीडई,
तु ही अनादि औ अनंत एक रूप है दई॥४७॥ तजे हि साम दाम दंड भेद च्यारि भूपती,
सुग्यांन रूप साध हैं रटैं तुझै महा धृती। इहै हि सारदा सदा सुबांनि रावरी महा, प्रभाव याहि के मुनीश शुद्ध तत्व की लहा॥ ४८।।
___ - दोहा -. सार समुच्चै तू कहै, तत्व सार तू देव। साधु समाधि प्रदायका, दै दयाल निज सेव।। ४९ ॥