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________________ २७२ अध्यात्म बारहखड़ी सड्यो पङो इह देह जु पापा, सो मैं कुवुधी जान्यो आपा। सत्य स्वरूप न जान्यों तू ही, सदा धरे परपंच समूही।। ३५ ।। पग्म समाधि देहु जगराया, मेटि भरमना मूल जु माया। सधन तुहीं आतम धन धार, निधन हर जम 6 जु उवारे।। ३६ ॥ निरधन सव ही निधन निवासा, लक्ष्मीधर तू अतुल प्रकासा। सहित अनंत गुननि तँ तू ही, रहित विभाव सुशक्ति समूही ।।३७ ।। सहजानंद सहजगति तूही, सहज विभास प्रकास समृही। सहनशील मुनिराय जु ध्यांच, सदा सरवदा तोहि जु गांवें।। ३८॥ सरवर आतम भाव निमग्ना, र तोहि मुनिवर संविग्ना। कहा सारदी चंदर क्रांती, तुव वांनी सादर अतिक्रांती॥ ३९ ।। - मंदाक्रांता छंद . .......... ... .. सानियो का निक्टाहि, रहै. साई साक्षात देवा, ___सामीप्यो तू, मुनिजननि कै, सार सरवस्व वेवा। साधू पूजै, अतिशय धरा, सातिौ तृ मुनिंदा, ___ साध्यो तू ही, जितपति अती, स्वामि है मोक्ष कंदा ।। ४० ।। स्वाधीनात्मा, अति गुण युतो, साधना सर्व गावै, स्वात्मारामो, परम पुरुषो, सार्वभौमा जु ध्यान । साचौ देवा, समरथ सदा, साधका होय पावै, __ नोकौं सांई, मुनिजन लहैं, वाधका नाहि भावैं ॥४१ ।। साक्षी भूतो, सब घट लखे, स्वास्थि रूपो तुहि जो, ___सार्वः सर्वो, सकलपत्ति अती, साहिवो है सही जो। साखा गोत्रा, प्रवरन प्रभू, तू असाधारणो है, सारी भ्रांती, हरइ मनकी, मारभूतो जिनो है।४२ ।। - छंद नागच्च - नहीं कदापी स्वापतेय तो समान लोक मैं, तु ही अनंत स्वापतेय है स्वभाव थोक मैं।
SR No.090006
Book TitleAdhyatma Barakhadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal, Gyanchand Biltiwala
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages314
LanguageDhundhaari
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size3 MB
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