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अध्यात्म बारहखड़ी
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घीजि ( खीजि ) रीझि त्यागि लगे हि भक्ति भावनि मैं,
घुसैं ( खुसैं) नाहि मोह पैं धरयो स्वरूप मैं पना। फ़्तौ (खतौ ) नां विभावनि मैं पेद ( खेद) विनु नायक तू, __ पै ( खै) कर जु पोट (खोट ) रूप, अंधकार को दिना। पौरक (खौरक) नो दास बनस कंटिक की . . . . . . : घंध ( खंध) विनु बंध विनु घः प्रकास तू गिना ।। ५४।।
a - कुंडलिया छंद - नेरी देव सुकांतता, हरै सोक संताप,
ताहि कहैं वुध लक्षमी रमा परणती आप। रमा परणती आप, ज्ञान मात्रा जु विभूती,
ख्याति रावरी सोइ, अतुल आनंद प्रसूती। अनुभूती द्युति कांति, संपदा सिद्धि घणेरी,
भाषै दौलति ताहि, कांतता देव सु तेरी ।। ५५ ।। इति षकार संपूरणं । आगैं दंती सकार का व्याख्यान करें है।
- शुकि - सनातनं सदानंद, सारासार निरूपकं । सिद्धं शुद्धं बुद्ध, पूजितं सीरपाणिना ॥१॥ सुश्रुतं सुप्रियं धीर, सूत्र सिद्धांत दीपकं। मुनिसेनापतिं वीरं, भाव सैन्यान्वितं विभुं॥२॥ सोम दृष्टिं धरा धीशं, सौम्यं शांतं सदोदयं । संपदा संचयं ध्याये, द्यः स याति परंपदं ॥३॥
- अरिंदन छंद ... स कहिये श्रुति मांहि श्रेष्ट का नाम है, .
तो बिनु श्रेष्ट न कोय, श्रेष्ट तू राम है।