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अध्यात्म बारहखड़ी
खोज न पायौं नाथ, तुव मारग को मैं कभी। लडे कर्म जड साथ, उन मारग भरमाईयो।। ४८ ।।
___... सवैया .. ३१ - खोहरै पहार के निवास करि स्टैं साधु
खोरि मैं इकंत वैठि तोही कौं चितारहीं। खौरि काटि चंदन की वंदन करै गृहस्थ
जत्ति जन न्हवन न खौरि कभी धारही। साधुनि की खौरक से भागें काम क्रोध छल
तोहि लषि साधवा जु ही हिं भवपार ही। पंढ नर तेहि जेहि ध्यावै नांहि तो कौं कभी, तेरेई प्रसाद भव्य राग दोष टारहीं।। ४९ ॥
- दोहा ... रखंजन की मिटि खंजता, पद पां. अविकार। अंध आंखि पांचैं प्रभू, ज्ञान रूप अतिसार ॥५०॥ खंध न बंध न रावर, खंध देस नहि कोइ। खंध प्रदेस न है प्रभू, परमाणव हु न होय ।। ५१ ।। तू केवल चिद्रूप है, गुन अनंत तो माहि। ज्ञानानंद स्वरूप तू, परपंचनि मैं नाहि ।। ५२ ।। घष्या पासि दु शुन्य जो, वाग्म मात्रा सोय। सव मात्रा मैं एक तू, चिन्मात्रो प्रभु होय ॥५३ ।।
अथ द्वादश मात्रा एक कवित मैं।
- सवैया -
तू हि षटकारक स्वरूप गुन घांनि (खांनि) भूप,
षिसे ( खिसैं ) नाहि ध्यान तैं कदापि रावरे जना।