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________________ २६४ अध्यात्म बारहखड़ी षोडौं (खाडौं) ज्ञान भाव को जिनकै, तेई कर्म प्रहारें। लेकरि चेतनभाव अतुल धन, तेरौ नग्र निहारै ।।२५ ॥ षाई (खाई) कोट न पौरि न कोई, गृह पंकति ह नाही। वापी कूप न सरवर सरिता, तू है जा पुर मांही ।। २६ ।। ता पुर पहुंचें तेरे दासा, जे निरविषया हो। विर्षे समान न और जु वैरी, ए जीवनि की घो।। २७॥ खाजि खुजावत हि भल लागें, फुनि अधिकौ दुख होई। विषय सेवता ही भल्ल लागें, दुष 4 भव भव सोई।। २८ ।। खांहि अभक्ष अपेय जु पी, ते नहि तेरे दासा । खादि अखादि विचार विना पसु, अविवेकी अधरासा ॥२९॥ कुवनिज करि तुल भत्रिन पा, सां नर्क मिला ... ... ... खांड लवन धांनादिक वनिजा, करहि न तेरे दासा ॥३०॥ खान समांन जगत को माया तामैं, रा. नाही। संसय विभ्रम मोह रहित नर मगन रहैं तो मांही ॥ ३१॥ खाय जु रूखा टुका साधू, ध्यावै तोहि नचिंता । तेई भव जल कौं जल देकरि, पाबैं तुव पुर संता ।। ३२ ।। खास सास आदिक अति रोगा, दासनि कौँ लखि भागें। रागादिक रोगा जन्न नासैं, तब कछु व्याधि न जागें ।। ३३ ।। खिसैं न ग्यान क्रिया ते कवही, तेरे दास निकंपा। परे खिसांनै जिन पैं कर्मा, पद पावें जु अलिंपा॥३४॥ खिरक समान इहै भव स्वामी, पसु सम ए भववासी। विषयरूप त्रिण के अभिलाषी, अविवेकी दुष रासी ।। ३५॥ नर तेई जे तेरे दासा, कण मैं चित्त लगा। विषय रूप त्रिण कवह न चाहै, ज्ञान स्वरूप हि भावै।। ३६ ॥
SR No.090006
Book TitleAdhyatma Barakhadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal, Gyanchand Biltiwala
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages314
LanguageDhundhaari
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size3 MB
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