SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 270
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६२ . . .. अध्यात्म यारहखड़ी - सोरठा - ष कहिये श्रुति माहि, नाम इहै जु परोक्ष कौ। यामैं भ्रांति जु नाहि, तू परोक्ष परतक्ष है।। २ ।। तृ षटकारक रूप, षट करम जु तेरै नहीं। तू षट द्रव्य निरूप, षट कायनि को पीहरा ॥३॥ षटदस भावन भाय, पावै तेरौ पद मुनी। षटदस सुर्ग कहाय, सो चाहे नहि मुनिवरा॥४॥ षट बिंशति प्रकृती हि, मोहतनी मुनिवर हतें। तिनः कर्म जु वीहि, भामैं अपनी सौंज ले॥५॥ षट त्रिंशत गुन धार, आइरिया तोकौं भनँ। घट चालीस जु सार, गुन पांचैं तुव भजन ॥६॥ . .. दोहा -. षट पंचास कुमारिका, देवी रुचिक निवास। चरन कमल ध्याबैं प्रभू, तेरे आनंद रासि ।। ७ ।। घष्टि सहसर सुत पिता, चक्री सगर सुग्यांन । तेरे चरन सरोज भजि, पहुच्यो पुर निरवान ॥ ८ ॥ गहै निगोद सरीर कौं, लहि कारण षटतीस । पांढं तेरे भजन विनु, जनम मरन अति ईस ।।९।। षट षष्टी सहसर उपरि, त्रय सत अर षट तीस। अंत महुरत एक मैं, भामैं मुनि अवनीस ।। १० ।। मन वच तन की चपलता, वसु मद विषया पंच। चउ त्रिकहा, विसना सपत, चउकषाय दुख संच॥११।। पंच मिथ्यात समेत ए, कारण हैं घट तीस। इन करि जीव निगोद, लहि सुख देखें कुमतीस ॥१२॥
SR No.090006
Book TitleAdhyatma Barakhadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal, Gyanchand Biltiwala
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages314
LanguageDhundhaari
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy