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अध्यात्म बारहखड़ी
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शः कहिये मात्रांतिकी, तू सव मात्रा मांहि।
चिनमात्री जगदीस तू, राग दोष भ्रम नाहि ।। ५९ ।। अथ बारा मात्रा एक कबिन मैं।
- सवैया ३? - शक्तिनि को पुंज तूहि, शांत दांत है प्रभूहि,
शिव रूप तू अनूप, शील को निवास है। शुद्ध बुद्ध शूरवीर ध्यांव, तोहि साधु धीर,
शेमुषी प्रदायक तू आनंद विलास है। निश्चल स्वभाव शैलनाथ से अडिग्ग भाव
जर्षे मुनि राव तू हि शोक को विनाश है। शौच को विकासक तू, शंकर जिनिंद देव
शः प्रकाश ज्ञानभास नायक सुपास है।॥६०॥
__ - कुंडलिया छंद - तेरी नाथ ज शांतता, सत्ता अतुलित शक्ति,
श्री संपति लक्ष्मी रमा शिवा वस्तुता व्यक्ति। शिवा वस्तुता व्यक्ति, भिन्न नहि तोते नाथा,
एक स्वभाव स्वरूप कवहु छाडै नहि साथा। भवा भवांनी भूति, शुद्धता ऋद्धि घणेरी,
भार्षे दौलति ताहि, शांतता नाथ जु तेरी॥६१ ॥
आगैं सवर्गी षकार का व्याख्यान कर है। ( प को कहीं ' ' . में रखा गया है. जय प्राइस कागा में : कहाँ 'स्व' १५. जैसे घोट - खोट।
- संपादक) - शोक -- घकाराक्षर कर्तार, भेत्तारे कर्मभूभृतां । सर्वमात्रामयं धीर, वीरं वंदे सदोदयं ।।१।।