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अध्यात्म बारहखड़ी
- शोक - रजोहरं रमानाथं, राज राजेंद्र सेवितं । रिक्तता रहितं पूर्ण, धर्म रीति प्रकासकं ॥१॥ रुक्माभं रूप लावण्य, भूषितं लोक भूषणं। रेत शादि रहित; - दादरीयं . ६ || .. रोगादि रहितं शुद्धं, रौरवादि निवारकं । रंगरागादि निर्मुक्तं, रः प्रकाशं नमाम्यहं ।। ३॥
– उपेंद्र वज्रा छंद - भाष्यो रकारो धन को जु नांमा, नांही रकारी विनु नाम रामा। रकार भाष्यो फुनि वैश्रवो हू, सोऊ स्टै जु अर वासवो हू॥४॥ रम्यो रमानाथ रमाधवो तू, मृत्यु हरै नाथ रसायनो तू। रमा न वाह्या चित शक्ति तेरी, सोई रमा है प्रभु तोहि नेरी ॥५॥ दोसा रसा नां रस वाक्य तू ही, रत्नादि दाता जग को प्रभू ही। न रत्न कोई विनु आत्म भावा, रत्नत्रया तू हि धेरै स्वभावा ॥६॥ पृथ्वी रसा है तु हि भूपती है, भूमी समाधी तुहि दे यती है। रसातले जाहि सु तेहि मूढा, जे तोहि त्यागे कुविधी हि रूढा ॥७॥ रक्षा वतावै सव जीव की तू, प्रीति छुड़ावै जु अजीव की तू। रती हु मात्रा नहि भ्रांति जाक, तोमैं रच्यो जू भवि जीव ताकै।। ८ ।। तोकौ रच्यो नांकि नही कदापी, तू ही अनादी प्रभु है उदापी। रचे न तूही भव भ्रांति माही, तोसौं रचे जे अभव्या मु नाही।। ९ ।।
- दोहा - रत्नपती पूर्जे चरन, रत्नगर्भ भगवांन । रतनेश्वर अति रत्न धर, रल न ता सम आंन ।।१०।। रमण रमा को जो प्रभू, रति अरति न एकोहि। अति सुशील जगदीस जो, अविचल सुविधेकोहि॥११॥