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अध्यात्म बारहखड़ी ब्रह्मयोनि निरयोनि तू, प्रभू अयोनी शंभु। अति योजन दूरा तुही, अति नीरै विनु दंभ ।। ४९ ।। यौ कहिये द्वौ दोष हैं, राग द्वेष अनादि। तू सब दोष वितीत हैं, निरदोषी प्रभु आदि॥५०॥
- छंद भुजंगी प्रयात - नहीं यौवनारूद्ध नांही जु वृद्धो, तु ही नित्य रूपो प्रभू है समृद्धो। तु ही यौगि की देव देवै जतिक्षा गर्दै सर्वोपी पर रिति रिक्षा . इहै धर्म ध्याना सुयंत्र स्वरूपा, तृ हि देव यंत्री नियंत्री अनूपा। प्रभू हैं स्वतंत्रा अमंत्रा अनादी, सवै सिद्धि यंत्रा तु ही स्यादवादी।।५२ ।। नही यंत्र मंत्रा नहीं कोय तंत्रा, तु ही यंत्र मंत्री स्वतंत्रा अमंत्रा। बिना नाम तैर नहीं और मंत्रा, विना ग्रंथ तेरे नहीं और तंत्रा ॥५३।।
____ --- ॐद त्रिभंगी - प्रभू तू हि अयंत्रा परम सुमंत्रा, प्रगट सुतंत्रा अविकारी । सब यंत्र सुमंत्रा, सकल जु तंत्रा, तू हि निमंत्रा अधिकारी। इह देह हु यंत्रा, जगत हु यंत्रा, लिखित हु यंत्रा तू भासै। फुनि सकट हु यंत्रा, वजड़ सुयंत्रा, तृ हि नियंत्रा अघनासै॥५४ ।। अति तू हि जु यंत्री, अतुल जु मंत्री, यंत्र नियंत्री, विनु यंत्रा। है सिद्ध जु यंत्रा, अजपा मंत्रा, योग जु तंत्रा, अति तंत्रा। सव भेद बतावै, विधि जु सुनावै, तत्व जताबै जिनराया। अभ यंत्र नसावै, यत्रि कहावै, तंत्र जु भावे, सुखदाया ।।५५ ।।
- दोहा - यं कहिये जिह . तु ही, करै आपुनौं दास । तं कहिये तिह नैं प्रभू, देय आपुनों वास ।। ५६ ।। यः कहिये जो जीव भवि, तोहि भजे भगवंत। सः कहिये सो सीघ्र ही, पावै ज्ञान अनंत ।।५७ ।।