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अध्यात्म बारहखड़ी
येन अर्थ फुनि और, जानैं तू घ्यायो सही। सो हूबो जगमौर, भव भरमण ताज हत्यौ।। ३७ ।। येन कहैं जा साथ, ज्ञान विराग विवेक है। ताकै भक्ति सुनाथ, उपजै तेरी अद्वतौ ।। ३८ ॥
- दोहा - येषां कहिये नाथजी, जिनकै भक्ति जु होय। तेषां कहिये तिनहि कै, तत्व बोध है जोय ॥३९॥ यैः कहिये जिनकरि तुौं, पाबैं दीन दयाल । ते रतन त्रय दे हमैं, सरणागत प्रतिपाल ॥४० ।। यैः कहिये फुनि जिनि मुनिनि, तोहि जु ध्यायो देव। तैः कहिये तिन ही सही, पायो पद जु अछेव ।।४।। यैः कहिये जिन सहित प्रभुः, तो सौं भेटैं नाथ। सो ज्ञानादि प्रबंध दै, बंध हरन जगनाथ ।। ४२ ।। योगी योग प्रकास तु, योगीश्वर अवनीस । योज्ञ तु ही अति शुद्ध है, योगारूढ मुनीस ॥४३॥ योग शास्त्र भासी तु ही, योग तंत्र योगीश । जाहि भ6 योगी महा, सो तू ही भोगीस ।। ४४ ।। तजि संयोग सबंध जे, योग धरै मुनीराय। संसलेष संबंध हु, तिनकै नांहि रहाय ॥ ४५ ॥ समुवायो जु सबंध हैं, सो प्रगटै तिनकै हि। तेरी भक्ति प्रशाद तैं, कर्म कलंक दवै हि॥४६ ।। योद्धा तेरे दास हैं, जीतें कर्म अनादि। युद्ध करन समरथ नही, तिनसौं खल्न रागादि ।। ४७॥ योग गम्य तोकौं कहैं, योगिनि त हु अगम्य । योनि लक्ष चौरासि तैं, टारै तू हि जु रम्य ।। ४८ ॥