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अध्यात्म बारहखड़ी युषमात असमत शब्द सहु, तू ही प्रगट करेय। शब्दातीत अजीत तृ, चेतन भाव धरेय॥ २८ ॥ मुक्तिः न. तेरी मी कहूं.. युबति ने तौ पास। निरयांणी निरढुंद तू, अति आनंद प्रकास ।। २९॥ युवा बाल वृद्ध जु नहीं, प्रभू युगंधर तू हि। युगल रीति भासक तु ही, तू युगबाहु प्रभू हि॥३०॥ युग जुड़े को नाम है, युगसम लंबी वाहु । महाबाहु तू देव है, परम स्वरूप अथाह ।। ३१ ।। युग प्रमाण धरती लखें, लखि लखि भूमि सुसाध । द्रिष्टिपूत पाव जु धरै, धारै भगति अगाध ।। ३२ ॥ यूथ समूह जु नाम है, सर्व समूह प्रकास। कर्म यूथ टारै तू ही, यूथ गुननि के पास!॥ ३३ ॥
. - बसंत तिलका छंद .. यूनां तु ही जु अतिवीर सुधीर स्वामी,
तू ही जु धर्ममय यूप धेरै सुनामी । ये तोहि चित्त करि भव्य जना जु ध्यांव,
ते शुद्ध बुद्ध अविरुद्ध स्वरूप पावै ।। ३४ ।। ये तोहि भूलि विषयारस मांहि राचे,
ते लोक मांहि बहु रूप धरे जु नाचे। ये है अनन्य अति धन्य जु तोहि सेवें,
ते त्यागि राग अर दोष सुसिद्धि लेवें ।। ३५ ।।
– साठा - येन शब्द का अर्थ, जा करि भा0 पंडिता। जा करि त्यागि अनर्थ, लहिये शिव सो तू सही: ।। ३६॥