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अध्यात्म बारहखड़ी
थति तारै जग देव त, यग्य यजन यज्ञेस, .. . अज्ञासा : पूरन : सर रस...तोडि हेवेस। यजै तोहि देवेस, यज्ञ है तेरी सेवा,
यज्ञ ध्यान अगनीहि, होमिये कर्म अछेवा। अति दानो सो यज़, शील यज्ञो अघ टार, यज्ञ पुरुष है तू हि, देव जग तू यति तारै ।। ७ ।।
- दोहा - याज्ञक साधु मुनीश्वरा, यज्ञ तिहारौ ध्यांन । यश तो सम और न धेर, यशी न तो सम आंन ।।८।। नाम जनेऊ को कहैं, पंडित यजुपवीत । धारि जनेऊ गृहपती, त्यागें सकल अनीत॥९॥ द्विज क्षत्री वणिक जु कुला, एहि जनेऊ लेहि। शूद्रनि कौं लेवा नहीं, इह आज्ञा गुरु देहि ॥१०॥ तोहि भन्यां त्रिकुला भला, विना भजन सव निंद्य। निदि कुला हूं ध्याय कैं, हौंहि जगत करि बंदि ॥११ ।। यथाख्यात चारित्र दें, नाथ तिहारी भक्ति। केवल दाता भक्ति है, भक्ति धेरै अति शक्ति ।। १२ ।।
__ - छंद मोती दाम - तु ही यम नेम जु आदि सहि, प्रभू वसु जोग विधी हि कहै हि। तु ही यम नासक मोक्ष प्रकास, महायत नागर यन्न विभास॥ १३ ।। ल मुनि यत्र जु यत्र जु नाथ, सु तत्र जु तत्र जु तू हि अनाथ । ग्रव प्रमिता प्रतिमा हु निहारि, कहैं अति पूजित सूत्र मझारि॥ १४ ॥ जएँ जु यमी नियमी मुनिराय, भजे हि शमी जु दमी जतिराय। ग्टैं नहि तोहि सु ते हिय अंध, मिथ्यात हि राचि कर अघबंध ।। १५ ॥