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मैत्र्यादिक भावना प्रकास मोह जीतक तू रोह तुल्य जीव को न दूसरों अहित है । मौलि सव लोक कौ जु मंगल स्वरूप नाथ
मः प्रकास हैं अनास ईसुर महित है ॥ ६७ ॥ कुंडलिया छंद -
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अध्यात्म बारहखड़ी
माता पद्मा शक्ति जो आतम सत्ता जोड़, चिद्रूपा गुण व्यक्ति जो, चिनमुद्रा है सोइ । चिनमुद्रा है सोय, वस्तुतैं एक स्वरूपा,
भेद भाव नहि काय, वस्तुता सोइ अनूपा । प्रभु की परणति शुद्ध, शुद्धता सोय विख्याता, शिवा आर्हति सिद्धि, शक्ति जो पदमा माता ॥ ६८ ॥
• दोहा
सो गौरी स्यामा सही, रमा राधिका सोइ । भवा जिनेंद्रा ऋद्धि जो, सो दौलति हू होइ ॥ ६९ ॥
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इति मकार संपूर्ण । इति श्री भक्त्यक्षर मालिका घावनी स्तवन अध्यातम बार खड़ी नाम ध्येय उपासना तंत्रे सहस्त्रनाम एकाक्षरी नाम मालाद्यनेक ग्रंथानुसारेण भगवद्भाजनानंदाधिकारे आनंदरांम सुत दौलति रामेन अल्प बुद्धिना उपायनी कृते पकारादि मकारांत पंचाक्षर प्ररूपको नांम चतुर्थ परिच्छेद || ४ || आगें यकार का व्याख्यान करें है ।
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झांक
यशो रासि महाबाहुं याचा सर्वपूरकं । वियासा रहितं नित्यं निश्चलं लोक वत्सलं ॥ १ ॥
यी मात्रा भासकं वीरं युक्तं गुणगणैः सदा । यूथाधिपति मीशानं निजबोध धरं सदा ॥ २ ॥