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अध्यात्म बारहखड़ी
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भहि मुमुक्ष मुनीश, ज्ञानमय तू हि जु दीठौ,
___ मुकट जगत को तू हि, रावरौं भजन जु मीठौ ॥४६।। मुद्रा शांत जु राघरी, मुसकान मुलकनि नाहि,
मुख तेरौं अविकार है, जा सम और जु नाहि। जा सम और जु नाहि, नाथ उनमुद्रित सोई,
मुसै मुननि को चित्त, जाय मुसियो नहि जोई। भ® जाहि वड भाग, जाहि पावै नहि क्षुद्रा,
बुद्रिा बागा या होग, शी संत जु मुद्रा।। ४७ ।। मूरति तेरी मनहरा, ज्ञान मूरती तू ही,
है आनंद जु मूरती, त्रिभुवन को जु प्रभूहि। त्रिभुवन को जु प्रभूहि, मूल्न धरमनि को तूही,
देव अमूरति तू हि, मूढमति तोते दूही। मूरति तेरी मूरति ...................
.............. || ४८॥ मूका तेहि जु नां जपैं, तोहि जु कार गुनगान,
मूरिख तोहि जु नां लहैं, तू ज्ञानी गुनवांन। तू ज्ञानी गुनवांन, करहि उनमूलित कर्मा,
मूलोन्मूल करे जु, तोरि डारे सव भर्मा । मूः बंधन को नाम, वंध सब कीनें भूका, ___ . मूरति तेरी पूजि, नां जर्षे तेहि जु मूका ।। ४९ ।। तिनकै मूंड मुडाइयां सिद्धि न कोई होय,
तोहि न ध्यां मूढ धी, पगे जगत मैं सोय । पगे जगत मैं सोय, बोधकर तू नहि जान्यों,
कंद मूल फल खाय, भाव करुणामय भान्यों। मेधा को नहि लेस, लेस नहि श्रुति को तिनकै,
भजन विना किह काम, मूंड मुडायां तिनकै ।।५० ।।