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________________ अध्यात्म बारहखड़ी १५ सकल त्यागी जे आसा पाशा, मोह त्यागि जे होहिं निरासा । ते साधु याक तत पांवें, या विनु जग जन जनम गुमांवें ॥ १२ ॥ प्रणवा सकल ग्रंथ के आदी, इह प्रणवा है तंत्र अनादी । महा मुनीश्वर यामैं लागें, याकौं पाय परम रस पागें ।। १३ ।। तीन वरण करि प्रणव कहाया, अवरण उवरण मम्मि लिभाया। पंच इष्ट हैं याके मांही, इष्ट मंत्र या सम को नांहीं ॥ १४ ॥ करि कुंभक जिन प्रणव जु ध्यायो, तित निर्वाण पुरी पथ पायो । प्राणायाम जु तीन स्वरूपा, पूरक कुंभक रेचक रूपा ॥ १५ ॥ ॐ स्वेत बर्ण जेध्यांवै, लबधरि चित्त न कहुँ वहांवें । ते पांवें निज शुद्ध स्वरूपा, ब्रह्म वीज हैं प्रणव अनूपा ॥ १६ ॥ सुवरण वर्ण प्रणव जेध्यांत्र, स्तंभन हेतु सवै श्रुति गांवें । पवन चित्त ए दोऊ थंभ, दोऊ थंभी जु शिव उपलं ॥ १७ ॥ रंग सुरंग सुॐ मंत्रा, ध्यायें होय वशीकृत तंत्रा । और न काहू क वसि पारै, मनहि वशी करि निज मैं धारें ।। १८ ।। स्याम रंग इह प्रणव जु ध्यांयाँ, शत्रु नाश कर जिनहि बतायो । जीव तणों अरि कोई न जीवा, रागादिक अरि हौहि सदीवा ॥ १९ ॥ रागादिक नाशन के हेतू, प्रणव स्याम कौं ध्याय सचेतू । स्वेत ध्याय है शुक्लजु भावा, शुक्ल जु ॐ शुक्ल उपावा ॥ २० ॥ ॐ कार निरंजन रूपा, ॐ कार सकल श्रुति भूपा । ॐ कार निधांन अनूपा ॐ कार प्रधान निरूपा ॥ २१ ॥ ॐ वर्जित तंत्र न सोहै, ॐ वर्जित मंत्र न मोहैं। ॐ विनु जंत्र न वल फोरें, ॐ विगरि न पातिग तौरें ॥ २२ ॥ ॐ विनु विद्या नहि आवै, ॐ विनु गुरु नांहि पढावै । ॐ विनु न वखान उचारें, ॐ विनु कछु धर्म न धरै ॥ २३ ॥ ॐ विनु वर्णाश्रम नांहीं, ॐ ध्यांन निराश्रम मांहीं । बिंदु युक्त ॐ कारो साधू, ध्यांवै मुनिवर तत्व अराधू ॥ २४ ॥
SR No.090006
Book TitleAdhyatma Barakhadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal, Gyanchand Biltiwala
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages314
LanguageDhundhaari
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size3 MB
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