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अध्यात्म बारहखड़ी
महिषी इंद्रतनी सदा, जपै तोहि कौं ईश। महल न महिला रावर, तू जोगी जगदीस ॥२१॥ मल्ल मोह हारी तु ही, मल्लनाथ जगनाथ। अतिबल अतिदल अचल तू, गुन अनंत तुव साथ।।२२।। मलमूत्रादि भरयो इहै, देह अपांवन निंद्य। तोहि छुवै कैसैं प्रभू, तू अनिंद्य जगबंध ॥ २३ ॥ मदिरा सम ममता इहै, मोहमयी अघरूप। तू हि निधार जगगुरू, रमता रांम अनूप॥ २४॥
- छंद सालिनी - माया काया, नांहि जाया जु तेरै, मारो कामो, नांहि ते? ज नेरे। मातंगी जे पूजि हिंसा जु धारा, ते तोकौं नां पांव ही धर्म हारा ॥ २५ ॥ मार्गो तुही, मार्गणा तुहि गावै, मांनी जीवा, तोहि नाहि जु पावै। मातंगा हू, तोहि ध्याय जु देवा, हो तेरो शक्र धारै हि सेवा ॥ २६ ॥ माना गात्रा, नाहि छात्रा जु तेर, माया जालो, नाहि तैरै जु नेर। माता ताता, नांहि भ्राता हु तेरे, मा लक्ष्मी जो, शक्ति तैर हि नेरे।। २७ ।। मानो नाही, तो हि पावै कदापी, मारे जीवा, ते न पावै जु पापी। मांसाहारा, नांहि भक्ती जु धारें, तेरे दासा जीव हिंसादि टारै ।। २८ ।। माहे पोसे, तीर बैठा नदी कै, तोकौं ध्या साधु भ्रांती न जीको। मापे लोका, लोक ही सवैही, तोकौं स्वामी, सर्व सोभा फर्व ही ॥ २९ ।। माला फेरें, नाम तेरी जु लेवें, गार्हस्था जे, दानं चास्यौं हि देवें। साधू थ्यानारूढ है तोहि ध्यांव, योगारूढा, अंतरात्मा जु गांवें॥३०॥
– चौपड़ी - मास मास उपवास जु धारि, साधु तपोधन तत्व बिचारि। भ6 तोहि तजि जग परपंच, तो विनु सर्व गन्यों जग रंच ॥ ३१॥