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अध्यात्म बारहखड़ी
- छंद नाराच महानमा महा कलेसनासको महा प्रभू,
महागुणी गुणाकरो युगादि देव है विभू। महा जु कर्म नासनो महेशता धरो हरो,
महामनोहरांग है . महा गुरू रमावरो ।। १२ । मलाहरै कलाधरै मनोज दंडको महा,
न मत्सरी लहैं जु जाहि ज्ञानवंत. लहा। मलीमसा मनामलीन नां लहैं अनंत जो,
__मनुक्ष देव दानवा भ. अनादि कंत जो॥१३॥ मरुमछली दुनी मझार वाग्दिो अछेव सो,
सदा सुसर्वमध्य है, महोत्तमो अभेव सो। महाकृती निराकृती महासुलच्छि दायको, मयाकरो व दयाकरी अनामयो असाथको । ६.५...
- दहा .मठमंडप में मुनिवसैं, जपैं तोहि दिन गति। मगन दसा दासोनि की, अतुलित अचल लखाति ।। १५ ।। मगरमछ सम मोह है, भवसागर के मांहि । तो विनु पार न पाइए, तू तारक सक नाहि ।। १६ ॥ मकरध्वज मनमथ मदन, कहैं काम कौं नाम। काम मनोभव है सही, कामजीत तू राम॥१७॥ मलिन भाव सव ही हरे, मघवा पूजित तृ ही। मधु मांसादि निषेधको, मधुसूदन जग दृहि ।। १८ ।। मदसूदन अघसूदनो, ममता हर महिपाल । मधुकर चरन रोज के, मुनिवर मगन बिसाल।।१९।। निज रस अति मकरंद जो, पीवहि स्वरस छकह। भिक्षा लेकरि मधुकरी, तोही माहि पगेह।। २० ।।