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________________ २१८ अध्यात्म बारहखड़ी महादेवं महावीरं मान माया विदूरगं। मिथ्या मार्ग निहतारे, मीनध्वज निपातकं ॥१॥ मुक्तिमूलं महाधीरं, मेधापार सदोदयं । मैत्र्यादि भावना रूपं, मोह रागादि वर्जितं ।।२।। मौनारूद महाज्ञानं, मंगलं विश्वपारगं। मः प्रकाशं चिदाकाशं, वंदे वीर शिवाधिपं॥३॥ ___ -- चौपड़ी - महाज्ञान मतिवान जु मुनी, जपैं तोहि तू है अतिगुनी। महाराज सरणागत पाल, पतित उधाग्न दीन दयाल ।।४।। महा ऋद्धि अति सिद्धि निवास, मन बुद्धि कै जु परें अतिभास । रटहि महेंद्र नरेंद्र खगेंद्र, महित महापति तू हि मुनेंद्र ।। ५ ।। सदा मनोहर अति हि सुरूप, मृत्युंजय भयहर भवरूप। मद मच्छर ( मात्सर) मनपथ मलनास, मानती अतिकृति अतिभास ।।६।। महामहेश्वर अति मरमन, महा प्रभू सुविभू अतिविज्ञ। मरमी धरमी देव महंत, मही नीति धारी भगवंत ।। ७ ।। मनुपति मुनिपति जगपति जती, करहि मनीषी सेवा अती। नांव मनीषा बुद्धि जु कहैं, महाकांति तोकौं मुनि चहैं ।। ८ ।। महामहीप मही को धनी, महिमा सागर नागर गुनी। महामहेश जिनेश नरेस, जपहि सुरेश रसेस असेस ।।९।। मन मरकट के रोधक साथ, पदनांतक अति मगन अवाध । महामंत्र तेरौ उर धरै, महापद्म पदमा तुहि वरै ।। १०॥ महसां पति महतां पति गुरू, महाध्वर धरो अतिब्रत धुरू। महामहर्षि महाशय प्रभू, महापराक्रमधारी विभू॥ ११ ॥
SR No.090006
Book TitleAdhyatma Barakhadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal, Gyanchand Biltiwala
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages314
LanguageDhundhaari
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size3 MB
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