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अध्यात्म बारहखड़ी
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भजि चरन कमल जग जाल तजि,
आंवहि तुव पुरि भविजना। अति अमल अतुल तुव गुन सुभजि,
अजर अमर हैं सुखतना ।। ५७ ।।
अथ द्वादस मात्रा एक कबित्त मैं।
- सवैया ३१ - भरम को नासक तू भाव अति उज्जल है,
भारती तिहारी पार करै भव जल तैं। भिन्न पर भावनि त भीनौं निज भावनि मैं,
भुकति मुकति ईस तारै निज बल तैं। भूप सब भूपनि को भेदभाव नांहि जाकै,
भैषज समांन देव न्यारौ भोग मल तैं। सारभौम नाथ जाकै भंगुर न साथ कोऊ, भः प्रकास है अभास जूबो मोह छल तैं ।। ५८ ।।
- दोहा - तेरी नाथ जु भद्रता भवा भवांनी सोय। कहैं भद्रकाली जिसैं, निज सत्ता है जोय।।५९ ।। ऋद्धि सिद्धि गौरी रमा, मा पदमा परतच्छि। काली काल हरा महा, संपत्ति स्यामा लच्छि।। ६०॥ भा आभा द्युति क्रांति जो, चंडी तिमर खिनास। स्वाभाविक पर्याय जो, प्रभु की अति गुन भास॥६१ ।। शिवाशंकरी श्री प्रभा, लक्ष्मी चेतन शक्ति।
सो जैनी जिनभावना, दौलति अतुलित व्यक्ति ।। ६२ ।। इतिश्री भकार संपूर्ण । आगैं मकार का व्याख्यान करै है।