SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 220
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१२ भः प्रकाश चिदाकाशं सर्वाधारं सदोदयं । वंदे देवेंद्र वृंदा, योगिनं भोगिनं विभुं ॥ ४ ॥ दोहा भव्यनि को तारक तु ही भव सागर की पोत । भर्त्ता त्रिभुवन को प्रभू, जाकै गात न भोत ( गोत ) ॥ ५ ॥ भयहारी भगवंत तू, श्री भगवान सुजांन । भद्र भद्रकृत भरित तू, ज्ञान भवन गुनवांन ॥ ६ ॥ तु ही भवांतक भ्रम हरै, करै भलाई नाथ । भली तुही भजन जुं किया, भव तौर वडहा ॥ ॐ — अध्यात्म बारहखड़ी - भव तेरौ हू नांम है, होय स्वभाव स्वरूप । तू भदंत गुनवंत है, भगत बछिल शिव रूप ॥ ८ ॥ भगति तिहारी भवि करें, अभवि न पांवें भक्ति । भुक्ति मुक्ति की मात जो, दै निज भक्ति सुव्यक्ति ॥ ९ ॥ भर्म नांव कंचन तनौं, कनक कामिनी त्यागि । भगति करें मुनिवर महा, एक तोहि मैं पागि ॥ १० ॥ भद्रिक परिणामी लहैं, कुटिल लहैं नहि तोहि । गुन भरिता हैं तो भज्यां दै सेवा प्रभु मोहि ॥ ११ ॥ — त्रोटक छंद भय क भयकारिज ईश तु ही, भगवान विनां दुख कौंन हरे, भकभूर करें अधकर्म तु ही, भव भंजन तू भवि रंजन है, भरतादिकतार निरंजन है। भणियों न भणायउ पंडित ही ॥ १२ ॥ भगवंत तु ही भव पार करै । ही भरपूर तु पिंड सुख ही ॥ १३ ॥ जु जगभास करो जु महा कवि है। अतिभाव तु ही मनभावन है, वडभाग तु ही अति पावन है ॥ १४ ॥ नहि भानु जु और तु ही रवि है, —
SR No.090006
Book TitleAdhyatma Barakhadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal, Gyanchand Biltiwala
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages314
LanguageDhundhaari
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy