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अध्यात्म बारहखड़ी
बंदी तोहि दयालज़ी, बंदौं तेरे दास। बंदौं तेरे सूत्र जी, भक्ति ज्ञान परकास ॥६७ ।।
बबा पासि दु सुन्य है, अंतिम मात्रा एह। .. "सत्र मात्रा में एक तू, चिनमात्री जु विदह ॥६८ ॥
अथ द्वादस मात्रा एक कबित्त मैं।
ब्रह्म परब्रह्म तू ही, बाल वृद्ध युवा नाहि,
बिगरी सुधारै नाथ जीव की अनादि की। बोर बुद्ध शुद्ध तू ही, छूटै बूंद आंनद की,
बेद सूत्र भासक प्रकासै रीति आदि की। बैनतेय सारिखौ जु कर्म नाग नासिवे कौं,
बोध को निधान रीति भाथै स्यादवाद की। बौद्ध नांहि जानें भेद बंदनीक तू अबेद, बः प्रकास है अनास धार रीति दादि की।६९।।
- दोहा -- तेरी नाथ जु बस्तुता, सोई सत्ता शक्ति।
संपति भूति विभूति जो, दौलति निज छति व्यक्ति॥ ७० ॥ इतिश्री बकार संपूरणं । आगै भकार का व्याख्यान कर है।
. भोक - भव्यांभोरुह मार्नडं, भानु कोटि जित प्रभं। भिन्नं रागादिभिर्भीति, नाशनं भक्ति मुक्तिदं ।।१।। भूतनाथं जगन्नाथं, भेदाभेद प्रकाशकं । भैरवादि पतिं धीरं, सर्व भैरव तापहं ।। २ ।। भोगातीतं महाभोगं, सार्वभौमं महेश्वरं । भंगुर व संभृतै, विवर्जितमीश्वरं ॥३॥