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अध्यात्म बारहखड़ी
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है महूर्त दिन जब रहै, ब्यालू तब ही जोगि। रात्रि न भोजन उचित है, तू बरजै हि अजोगि।।२०।। ब्याल नांव है दुष्ट गज, व्याल नांव है नाग । अहि न उसै गज हु नसे, तुव दासा बड़भाग।।२१।। ब्याघ्रादिक लखि दास कौं, दास हौ हि तजि गर्व । सुरनर असुर जु खेचरा दासहि सेवहि सर्व ॥२२ ।। काल करम रागादिका, पीरि सबै नहि एहि । तो औसौ दूजी कवन दासनि कौं दुख देहि ।। २३॥ बास रहित तू बसि रहयो, निश्च आपुन माहि। व्यवहारै सब ज्ञेय मैं, तू हि बसै सक नांहि ॥ २४ ।। बासुदेव पूजित तूही, बासुपूज्य जग पूज्य । व्याकरणादिक भास तू, अव्याकृत जग दूज्य ।। २५ ।। बादीगर को बानरा, मोहि जु कीयो मोह । ज्यों हि नचाच त्यौं नचौं, इह मोह अनि द्रोह ॥ २६ ॥ बाट बहता नाथ जी, उपनौ अति गति खेद । अब निज पुर को पंथ दै मोहि करौ निरख्नेद॥२७॥ बांनी तेरी सुनत ही, बहुतनि खोयो खेद। तेरी बानि पियूष है, परम स्वरस अतिबेद ।। २८॥ वारी तेरी फलि रही, जाकै बारि न कोय। फल पावै प्रभु तोहि करि, तू फलदायक होय ।। २९।। बिगरी बात सुधारि तू, तो विगरि न कहुं चैं। विक्यौ अचेतन हाथ हूँ, अब दै सम्यक नैंन ।। ३०।। बिरही नादि ज काल को, लही नहीं निज शक्ति। बिस्यौं बिरयौं करि नर भयो, दै नरहरि निज भक्ति।।३१।। बिरला तोकौं पांबही, भव बिष हरि जगनाथ। विजय जीव की तोहि तैं, विल होत अघसाथ ॥३२१५