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________________ अध्यात्म बारहखड़ी २०५ -. भोक - बर्द्धमान महाबाहुं, विश्व विद्या कुलगृहं । वीतरागं विनिर्मोहे, बुद्धं शुद्धं प्रभाधरं ॥१॥ बू मात्रा भासकं धीरं, बेद सिद्धांत रूपिणं। बैनतेय निभं वीरं, कर्म नाग निवर्हणे ।। २ ।। बोध रूपं चिदानंदं, बौद्धादि मत दूरगं। बंदे धीरं सदा शांत, निर्ग्रथं बः प्रकासकं ।।३।। - दोहा - ब्रह्मनिष्ट ब्रह्मन्य तू, है ब्रह्मज्ञ दयाल। परब्रह्म परमातमा, ब्रह्म निदेसक लाल ।। ४ ।। ब्रह्म शब्द के अर्थ बहु, भगवत मोक्ष सुज्ञांन । शील जीव श्रुति द्विजकुल्ला, एते ब्रह्म बखांन ।। ५ ॥ बहुश्रुत बिश्रुत बस्तु तू, तेरै नांहि अबस्तु। बहु जीवनि को पारकर, तू बहुत्त परशस्त ।। ६ ।। ब्रह्म योनि निरयोनि तू, बध बंधन नैं दूर। ब्रह्म बचन प्रतिपाल तृ, आनंदी भरपूर ।। ७ ।। वंद त्रिभंगी -- बक सम कपटी जे, धन झपटी जे, अघ लपटी जे, तुब न लहैं। मुनि हंस समाना, कपट न जाना, उज्जल ज्ञाना, तुव जु गहैं। निरमल जो भावा, अति निरदादा, अतुल प्रभावा, प्रभु इक तू। सरवर अमृत भर, तपहर तपधर, दुखहर सुखकर ड्रक त्रिक तृ॥८॥ मुनि है बनबासा, तजिधर बासा, बिबिध बिलासा, तोहि जपैं। लखि सन्न मैं तोहि, है निरमोही, तोहि जु टोही, साध तपैं। फुनि बन जल नामा, जलजित रामा, अति अभिरामा चिदघन तू। जित बनज सुचरणा, आनंदकरणा, हरइ जु मरणा सुखतन तू।९।।
SR No.090006
Book TitleAdhyatma Barakhadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal, Gyanchand Biltiwala
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages314
LanguageDhundhaari
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size3 MB
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