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________________ १७४ फरसी सम्यक बोध की, नाथ रावरै हाथ । क्यों न फंद काटौ प्रभू, क्यों न देहु निज साथ ।। ४१ ।। फ: कहिये ग्रंथनिविषै फूतकार कौ नाम । फूतकार सरप जु करें, विष भरियो अघ धांम ॥ ४२ ॥ नांम मंत्र तुम्हरों रटें, सर्प माल सम होय । फ: कहिये फुनि नाथ जी, निःफल भाषा सोय ॥ ४३ ॥ निःफल तेरौ भजन नां, फलदायक तू देव | दासनि के कछु कांम नहि, निकामा रस बेव ॥ ४४ ॥ फः प्रवेस की नांम हैं, तोतें ज्ञान प्रवेस | फ: कहिये फुनि कलह कौं, कलह रहित मुनि भेस ॥ ४५ ॥ कलह तजें विनु ज्ञान नहि, ज्ञान विना न अनंद । ज्ञानानंद स्वरूप अदभुत परमानद ।। ४६ । अथ बारा मात्रा एक कबित्त मैं । अध्यात्म बारहखड़ी फल कौं जु दायक तू नायक फणिंद को जु फासि तैं निकारि अर फिरिवौ मिटाय तू । फीटी वात मूढ करि फुनि फुनि धारें देह दास तेरे हैं विदेह कर्म तैं छुडाय तू । फूस तुल्य भोग भाव फेन तुल्य भूति राव फोरें फैकट भयौ जु लोक शुद्ध रूप राय तू । तू त्रिभाव भाव, फौरि हरे फौरिनिको, फंद बिनु फः प्रकास नाथ सुखदाय तू ॥ ४७ ॥ दोहा — — तेरी नाथ सफारता, अति विसतीरण शक्ति । सोई पदमा मा रमा, संपति दौलति व्यक्ति ।। ४८ ।। इति फकार संपूर्ण आर्गै बकार का व्याख्यान करें है।
SR No.090006
Book TitleAdhyatma Barakhadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal, Gyanchand Biltiwala
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages314
LanguageDhundhaari
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size3 MB
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