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अध्यात्म बारहखड़ी
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फूस तुल्य भव भोग ए, कण रहिता जड भाव। चाहैं पसु सम नर तिनैं, दासनि के नहि चाव ।। ३२ ।। चाव एक तुव भक्ति कौ, दास धेरै अतिभाव। फेन तुल्य भवभूति, जिनके नाहि उपाव ।। ३३ ।।
.. सबैया इकोप्ला -- फेन सम माया और काया है तडित सम,
वादर की छाया सम जाया जग जाल है। इंद्र चाप तुल्य भोग्य भावना विनश्वर जो,
वुद खुद जल के समान धनमाल है। यामैं नाहि सार कोऊ सार एक तू हि होऊ,
तारि भव सागर से तू हि दुख टाल है। फेरी जग मांहि देत बीत्यो जु अनंत काल, फेरि फेरि कहूं कहा जगत प्रपाल है॥३४॥
- सोरठा - फैल्लि रयो सव माहि, फैल न एक धेरै तु ही। जिनकै फैकट नाहि, तेई तोहि लहैं प्रभू।। ३५ ।। फैन न एको कोय, जैन प्रकासक त सही। बैंन सधा से होय, फोरे ते हि अनंत अघ ।। ३६ ।। फोरा सर्व मिटैहि, फौरे ही से भजनौं। कर्म कलंक कटै हि, तो. सर्व कल्याण है ।। ३७ ।।
- दोहा - फौरि जु मोहादिकन की, मेटें तेरे दास। फौज त्यागि है एकले, कार्दै कर्म जु पास ।। ३८ ।। फंद न तेरै एक हू, फंद रहित निरद्वंद। छंद अलंकारादि सव, तू भासै जग चंद ।। ३९॥ पस्यो फंद मैं मैं महा, तू छुड़ाय प्रभु मोहि । फंद जु काटि स्वछंद करि, कहाँ कहा अति तोहि ॥ ४०॥