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________________ २०२ दोहा फागुन कातिग अर प्रभू, मास अषाढ हु मांहि । शुक्ल पक्ष त्रय मास मैं वसु दिन वृत्त करांहि ॥ २३ ॥ अष्टमि तैं पून्यौं सुधी, इहें अठाई होय । तू हि प्रकास नाथ जी, सिद्ध गुननि परि सोय ॥ २४ ॥ फिरयों अनंती जौनि मैं तो बिनु दीनदयाल । अब फिरिवाँ सब मेटि तू, दै निज ज्ञान विसाल ॥ २५ ॥ फिरि फिरि बिनऊं नाथजी, भ्रमण न फिरि फिरि होय । सो निजवास दयाल जी, देहु क्रिया करि सोय ॥ २६ ॥ फिसका ओि — फिल्ल पारयो तैं ही मोह, , तो सौं लरि सकै नांहि चोरनिको रावही । फिट्ट फिट्ट कीचे तैं हिं राग दोष भाव सव, दासनि पैं भागि जांहि सकल विभाव ही । फीटी बात तेरे दरबार मैं न दीखे कोऊ, अध्यात्म बारहखड़ी फोटी बात कीयें नाथ तू न हाथ आव ही । फुनि फुनि कहाँ मेरी भ्रांति हरि दास करि, तेरा दास होय सो तुझें तुरंत पाव ही ॥ २७ ॥ दोहा - — फुटकर गुन तेरे नहीं, गुन अनंत इक रूप । फूटि फाटि नहि गुननि मैं, शक्ति अनंत स्वरूप ।। २८ ।। फूलि धेरै भव भाव मैं मूरिख लोग अयांन । 1 फूलि धेरै तुव भक्ति लहि, ज्ञानवंत गुनवांन ।। २९ ।। फूल पांच नहि जोग्य है, ब्रह्म व्रतिनि कौ देव । ब्रह्मचर्य के शत्रु ए. त्यागहि दास अभेव ॥ ३० ॥ फूंकि फूंकि पग मुनि धेरै तेरे दास उदासते, भव धारें दया अछेव । भोगनि तैं देव ॥ ३१ ॥
SR No.090006
Book TitleAdhyatma Barakhadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal, Gyanchand Biltiwala
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages314
LanguageDhundhaari
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size3 MB
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