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अध्यात्म बारहखड़ी
फाकी तेरे सूत्र की हरै अनादि रोगनिकौं,
फकै मायामोह कौं सुचूरण स्वरूप जो। जीव के असाध्य रोग, जन्म जरा मृत्यु सोग, ... . ...सव ही नसावै देव अँसी है निकूप जो। याको करें सेवन जु साधु सव वाधा जीत,
याको जस गांव सुरनाग नर भूप जो। दोष सब कटै याते, तेरीई प्रसाद इहै,
औषध को दायक तू वैद है निरूप जो ॥१६॥ फाकी लेय औषध की पथ्य जे हैं सदींव
__ अभष अहार त्यागि तजें जू कषाय करें। जीभ वसि राखें अर नारी सौं न नेह राखें
अलप अहार लेय सरखें दिढ काय कौं। तवै रोग करें नाथ कबहू न करें साथ,
कल्प काय हौंहि जीति पित्त कफ वाय कौं। बहुतनिकौ रोग हरयो इहैं जाची औषध जु ___फाकी देहु याकी देव हरै जू अपाय कौं ॥ १७ ॥ फाफ मारते जु काम क्रोध लोभ मोहादिक
जीव लोक जीति के सु सूरवीरपन की। तेरे दास देखत ही भाजि गये छांडि खेत,
सनमुख भये नांहि बुद्धि त्यागि रन की। दासनि नैं लोक हू उधारे तुव दास करि
काल वचाये रीति पाली जु सरन की। इहै रीति देखि कैं जु कायर लखे विभात्र,
भ्रांति सव नासि गई भव्यनि के मन की ।। १८ ॥ फाटि टूटि जाय सो तौ पुग्गल को रूप सव
फाटिवी न टूटिवौ न जीव माझ देखिये। असौ भेद तोही ते लहयौ जु भव्य जीवनि नैं
तू ही है सफार परिपूरण विसेषिये।