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अध्यात्म बारहखड़ी
छंद नारा - कहैं प का टकार हू फकार को हि अर्थ ही,
सुसोर होय जोर सो प का टकार है सही। नहीं जु सोर जोर हैं जहां तु ही विसजड़ी,
तुझे जपैं सुईसरा उपाधि सर्व भाजई।।६।। फवै हि सर्व तोहि कों, दवैहि मोह तोहि सौं,
किये अनंत पार लें, टरै मतीहि मोहि सौं । प्रभू फटिक्कसारि साकरे सुभाव निर्मला,
भ6 जु तोहि साधवा सवै हि पाप दमला।।७।। फला लहैं जु तोहि तैं अनश्वरा अनंत जी,
विभुक्ति मुक्ति दायको तु ही त्रिलोक कंतजी। वृथा तनौं हि फल्गु नांय, तू न फल्गु भामई,
कहै सुतत्त्ववारता तु ही सवै प्रकासई॥८॥ फलैं न कर्म पादपा जर्व अग्यान दुष्फला,
करें हि दास दग्ध वीज रूप ताहि निष्फला। फणाधिपा सुराधिपा नराधिपा तुझै भर्जें, ___अनादि काल के जु कर्म दासत परे भ6 ॥९॥ फटै न फूटई कभी स्वभाव भाव जीव को,
तु ही कहै इहे स्वरूप नाथ है सदीव करें। फला दला न फूल्ल कंद रावरे जनाभौं,
तज हि जीभ स्वाद कौं दयाल भाव ते रखें।।१०।। फंदकतो फिर हि चित्त ले विष सवाद कौं,
भजै न तोहि मूढ धी लग्यो महाविवाद को। तु ही सुधारि आप मैं लगावई महा प्रभू, ___ फल्यो जु फूलियो सदा तु ही तरू महाविभू।। ११॥