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अध्यात्म बारहखड़ी
अथ बारा मात्रा एक सवैया मैं । परम प्रसिद्ध देव, पावन जु दै स्व सेव,
अतिहि प्रियंकर तू प्रीतम प्रसिद्ध है। पुलिनि मैं बैठे साध तेरी ही करें अराध,
पूतातम पूजि एक तू ही अनिरुद्ध है। प्रेम तोसौं कीजे नाथ और तैं जु कौंन साथ,
पैसुन्य न भाव तोमैं एक न विरुद्ध है। . . . पोषक न तोमो और पौरिष अपार तोमैं,
पंथ देहु आपुनौं तु प; प्रकास शुद्ध है॥१२१।।
- दोहा - तेरी पदमा शुद्ध जो, निज सत्ता निज शक्ति।
सोई कमला लक्षमी, दौलति संपत्ति व्यक्ति ॥१२२ ।। इति पकार संपूर्ण। आगँ फकार का व्याख्यान कर है।
- भोक - फकाराक्षर कर्तार, फलदाता रमीश्वर । सर्वमात्रामयं धीरं, बंदे देवं सदोदयं ।। १ ।।
___ - दाहा - फकारांक सिद्धांत मैं, झंझा पौंन स नाम। पौंन न झंझा पाइए, नाथ तिहारै ठाम ।। २ ।। वहुरि फकार कहैं वुधा, भय रक्षण को नाम । तू भयहर भवहर प्रभू, चिदघन आतमरांम ।।३।। ईति भीति सव दूरि है, लेत तिहारौ नाम: डरै दास के दास सौं, भय भाजै तजि ठाम ।। ४ ।। स्तुति हू कौश्रुति मैं कहैं, नाम फकार प्रवांन । स्तुति तेरी गनधर करें, सुरनर करै सुजांन ।।५।।