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अध्यात्म बारहखड़ी
पीठ नाम सिंहासन होई, चमर छत्र सिंहासन सोई। तोहि फवै तू त्रिभुवन राजा, प्रीणय भव्य लोक भव पाजा ।। ७३॥ पीतांवर तू अतुल आशा सोयो अंत न्यः नाना . . . परम समाधि ध्यानमय तू ही, पीतांवर पूजित जु प्रभू ही ।। ७४ ॥ पीहर जीव मात्र को स्वामी, सब कायनि कौ रक्षक नामी । ज्ञान यंत्र मैं कर्म जु पीसैं, तिनकौं तेरे निज गुन दीसैं ।।७५ ।। पीत न सेत न रक्त न स्यामा, हरित नहीं तू अवरण नामा। पीतामृत तू अजर अमृत्यू, तोहि ध्याय जीते मुनि मृत्यू ॥७६ ।।
- छंद मोती दाम -
पुरांण पुनीत पुराण जु सार, तु ही पुरसोतम है अधिकार । महा पुरषत्व पुराधिपराज, नही प्रभु पुण्य अपुन्य समाज॥७७ ।। तु ही पुरदेव सर्वं पुरनाथ, तु पुष्कल रूप अनंत जु साथ । तु ही सु पुरातन पुष्टिद पुष्ट, भ6 पुरहूत महारस तुष्ट ।। ७८ ।। तु ही जु पुरंदर नाथ अनादि, भजै मुनि तोहि पुलाक जु आदि। कहैं पुरहुत पुरंदर इंद, सु तोहि भज्यां सव लेंहि अनंद ॥७९॥ दवै जु हियो सरवै प्रभु नैंन, पुलकित होय सरीर सु चैन । सुतोहि लख्यां सव भ्रांति पुलाय, सुपुण्य जुरासि तु ही सुखदाय॥८०॥ कहैं प्रभु पुण्य पवित्र जु नाम, तु ही सुपुनीत महामति राम। तु ही पुरुषारथ भासइ च्यारि, तु ही पुरिखा सवको मुझ तारि॥८१॥ करौं जु पुकार तिहारहि द्वार, रुल्यो वहुतौ अव दै ततसार। तु ही प्रभु पुज्य भ6 सव लोक, नहीं जु पुरां नव तू गुन थोक॥८२॥ पुलिन्नि मह निवसैं मुनिराय, व0 गिर गह्वर मैं जतिराय। वसे वन माहि करें तुब ध्यान, न तो सम आंन तु ही अतिज्ञान ॥८३।।