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________________ अध्यात्म बारहखड़ी प्रायश्चित्तादिक गावै, तपभेदभाव अति भावें। तेरौ सौ पांण न कोई, धारै दूजो नर होई।।६१।। पायो तेरौ जव मरमा, तव भागे सर्व जु भरमा। पाल्यो जव सर्व जु धर्मा, टाल्यो जव सर्व अधर्मा ॥६२ ।। - छंद वंयरी - प्रिय: प्रियंकर पिक जित बैंना, तू पिनाकि पूजित जगन॑नां । नावं पिनाकी शंभू कैये, पिक कोईल की नाम जु लैंये।। ६३ ।। पित्त वाय कफ सर्व हि रोगा, नाम लियें नासें दुख भोगा। पिडच न चाप न तेरै गेपा. अदभुत धनद्धर विन कोपा ।। ६४॥ पिठर समांन देह मैं जीवा, करम अगनि करि तपिउ सदीवा। तेरी भगति हि तपति निवार, परम शांतता भाव जु धारै ।। ६५ ।। तु पिधानते रहित जु देवा, निरावर्ण प्रगट जु अतिभेवा। पिता पितामह तृ हि सवौं का, सुगनर विद्याधर जु मुन्यौं का ॥ ६६ ।। प्रिया पुत्र परिवार न तेरें, कमलापति निज परणति नेरै। पिवहि जिके तेरी निजवांनी, जित पियूष अमरण पद दांनीं ॥६७।। छकहि स्वरस मैं विकलप दूरा, थकहि आपमैं आनंद पूरा। पिसे ज्ञान जंत्रै सव कर्मा, लसँ अनंता आतम धर्मा ।। ६८॥ पिव पिव भव्या निज रस शुद्धा, जाकरि जीव होय अतिबुद्धा। असे वैन तिहारे स्वामी, जे पीढं ते धन्य सुधांमी।। ६९ ।। प्रीति जु अप्रीती नहि दोऊ, वीतराग तू अदभुत होऊ। प्रीति करें तोसौं जे जीवा, तिन हि न पीरै कम अत्तीवा।।७० ॥ पीक समान जगत की भूती, पीप भरधो इह देह प्रसूती। इन प्रीति त्यागि जे जीवा, तोहि भ6 ते हूँ जग पीया।। ७१।। पीठि देय सब जग सौं नाथा, तोहि जु ध्यांऊ तजि सहु साथा । कबहु पीठि देंहु नहि तोही, मोहि सुधारि देव निरमोही ।। ७२ ।।
SR No.090006
Book TitleAdhyatma Barakhadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal, Gyanchand Biltiwala
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages314
LanguageDhundhaari
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size3 MB
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