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अध्यात्म बारहखड़ी
सदा सुबुद्धिराधिका, पती मुनीश ईश जो, सवै कुबुद्धि खंडनो, महाव्रती अतीश जो। सुविप्रवर्ण तारणो, जु क्षत्रि वंश धारणो, सुवैश्य वंसतारणो, त्रयी उधार कारणो॥ १२५ ॥ जु पुंस नारि औ नपुंस, शूद्र हू सुधारणो, सुरासुरा सुनारकी, पसुगणा उवारणो। सही अनादिनाथ है, मुनिंद आदिनाथ जो, प्रभु युगादि देव है, सदा जु सर्व साथ जो ।। १२६॥ महायती अजीत जो, असंभवो सुशंभवो, सदाभिनंदनो जिनो, मतीश नाथ ब्रभवो। सुपद्मनाभ पद्मजोनि, पद्मनाथ धीर जो, सही सुपास है प्रभु, रहै जु पास वीर जो॥१२७।। सुचन्द्रनाथ चन्द्रधार, चन्द्र कोटि ज्योतिसो, अनंत ज्योति बार जो, अनंत सूरि होकि हो। सुकुंद पुष्प तुल्य दंत, पुष्पदंत कंत सो, सुशीतलो श्रियंकरो, श्रियांसनाथ संत सो।।१२८ ।। सदा सुवास देव पूज्य, वासुपूज्य देव जो, सुनिर्मलो अनंत जो, सुधर्मनाथ सेव जो। प्रभू जु शांतिनाथ जो, प्रशांत सर्वकारनो, विभू जु कुंथवादि जीव, रासि कष्ट टारनो ॥ १२९ ।। सुकुंथनाथ कीटनाथ, चक्रनाथ देव जो, अरो अजो रजो हरो, हमैं जु देहु सेव जो। त्रिलोकनाथ मल्लनाथ, मोह मल्लजीत जो, अनंत जीत है अजीत, सुव्रतो अतीत जो।। १३० ।। मुनि सुब्रत्त दायको, प्रभू धनी सुब्रत्त को, नमैं सुरासुरानरा, नमीशनां अवत्त को। नही जु कृष्णभाव सो, सही जु कृष्णा रूप सो, सदा जु कृष्ण ध्येय है, सु नेमिनाथ भूप सो॥१३१ ।।