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अध्यात्म बारहखड़ी
प्रभा प्रपूर केवाल, अनायस ज्ञः को, सुरासुरा सुपायको, दयाल देव नायको। जनोत्तमो जिनोत्तमो, जितोत्तमो जगोत्तमो, परोत्तमो पुरोत्तमो, गुरोत्तमो वरोत्तमो॥११८ ।। चिदात्म है सुखात्म है, अनंत भाव आत्म है, भयांत है अघांत है, तमांत है परात्म है। सुव्यापको अव्यापको, महामुनी अलिप्तजो, सदा समाधि रूप नाथ, धीरवीर त्रिप्त जो।। ११९ ॥ निरीह जो नृसीह जो, अवीह जो निरीश्वरो, मुनीश्वरो अनीश्वरो, प्रभास्वरो यतीश्वरो। सही जु राम नाम है, विराम हे अकांम है, अनाम है सुधांम है, अनंत नाम ठांम है।।१२० ॥ नहीं जु और काम को, वही जु एक काम को, प्रभु अनेक ग्रांम को, धनी अनंत दांम को। सुसिद्ध है प्रसिद्ध है, विरुद्ध को विनास है, सही जु अर्हदेव है, अनंतज्ञान भास है॥१२१ ।। सुसूरि है प्रभूरि है, दिष्या शिष्या प्रदायको, अध्यातमी अध्यापकों, अलोक लोक ज्ञायको । सुसाध है अगाध है, असाध को असाध्य है, सुसाध्य है अराध्य है, उपाधिनां अवाध्य है॥१२२ ।। प्रजापती सुगोपती, सदा सुगोरखोजती, तु ही अनंत बोध दे, सुदत्त है धरापती। अमूरती असूरती, अधूरतो निरंतरो, महा अनंतमूरतो, विभाव से अनंतरो। १२३ ॥ अद्वैत भाव मुक्त जो, सद्वैत भाव मुक्त जो, अनेक एक दोय रूप, है अरूप युक्त जो। निराकृति जु साकृति, विशेष भाव देव जो, स्वभाव भाव रूप जो, सुभूप है अछेव जो॥१२४ ।।