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अध्यात्म बारहखड़ी
नीरा नाही, तुव सम प्रभू, दाह मेटै जु तु ही,
नीचा तेरी, भगति न लहैं, साधु सेर्वै समूही॥५१॥ ....नोको तू ही, निज गुण मई, नीतवानी प्रभू ही,
नीरागो तू, जगपति जती, नीठि पैए जु त हो। नीली भाजी, वरजित कहै, नीलि निंदै जु तू ही,
नीसाना जे, अति गुन मई, तू हि धार समूही॥५२॥ . नीवा वोयें, कर नहि चढे, नाथ आम्रा फलाजी,
नींचा देवा, भजिहि न मिटें, काम क्रोध छलाजी। जैसी जाने, भवि जन भनँ, तोहि कौ कै अनन्या, नीरा देखें, निजमहि सदा, तोहि कौं ते हि धन्या।।५३ ।।
- दोहा -... नीलांबर कहिये हली, हलधर पूजै तोहि। नीड नाम घर को सही, तेरै घर नहि होहि ।। ५४ ।। ईहां कोय प्रश्न 'जु करै, हलधर अंबर नील। क्यौं धार ते अति चतुर, इहै रंग अवहील ॥५५॥ ताको उत्तर है इहै, नीलि रंगे नहि होय। रतन मई पांवन महा, धारै हलधर सोय ।। ५६ ।। नींद भूख तेरै नहीं, दूषन भूषन नांहि। नीलांबर तारक तु ही, गुन अनंत तो पांहि।।५७ ।। उच्च जाति हू तोहि तजि, नीच हाँहि दुख रूप। नीच जाति हु तोहि भजि, उच्च होहिं सुख रूप॥५८ ।। नुति नति इंद्रादि करै, श्रुतिजु करें मुनिराय । नुद नुद उर अंतर तिमर, ज्योति रूप अधिकाय॥५९ ।। नुद कहिये दूरि जु करौ, भ्रांति हमारी देव। अनुपम निरुपम भक्ति दै, करें निरंतर सेव।।६०॥