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अध्यात्म बारहखड़ी
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धः कहिये धन धांन जु नाम, तू सव दाबक गुण गण धाम। धांन यांन मिष्टांन जु आदि, हिंसा कारन वनिज अनादि ।।४६॥ दास तर्जें करुणा उर भनें, करुणा विनु सठ पाप न तजैं।
पाप तर्ज विनु भक्ति न होइ, भक्ति विना प्रभु मिलै न सोय॥ ४७ ।। अथ द्वादश मात्रा एक कवित्त मैं ।
- सईया .. ३१ - धरम को नायक है दायक है ध्यान को जु,
धाता धिषणाधिप तू, धीर वीर धुर को। धूत नाहि पांव जांहि ध्येय रूप है महा हि,
धेठि हरै धेठिनि की, गुरु हैं सुगुर को। से₹ जू सवै जु सुर धैवंत प्रमुख सुर,
करि के अलाप चार, गावै पत्ति सुर को। धोरी तू हि धौत मल धंध भाव नांहि छल, धः प्रकास है अनास, नासक भौज्वर को ।। ४८ ।।
- दोहा .. धर्म स्वभाव जु वस्तु को, धर्मी तू निजरूप। तेरी जो धरमज्ञता, चेतन भाव स्वरूप ।। ४९ ।। सो लछिमी गौरी रमा, धा राधा निज भूति।
स्यामा गोपी संकरी, सो दौलनि विभूति ।। ५० ॥ इति धकार संपूर्ण। आगै नकार का व्याख्यान कर है।
- कि - नत्वा नाभिभवं धीर, ऋषभं ऋषि पूजितं । नित्यं निरंजनं शांत, नीति मार्ग प्रकाशकं ॥१॥ नुतं शक्रादिभिर्देवै, नूनं निर्वाण नायकं । नेतारं मोक्षमार्गस्य, नैक रूपं महामुनिं ॥२॥