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अध्यात्म बारहखड़ी
तो विनु धांवें अति गति माहि. तोहि ध्याय तेरे पर जादि। . धिषणाधर तू अति बुधिवांन, धिषणा कहिये बुद्धि प्रवांन॥२०॥ सब भासै धिषणा दे सही, धिष्ट कर्म टारै प्रभु तु ही। तोहि विसारि करें जड़ साथ, धिग धिग तिनको जीतव नाथ ।। २१ ।। धीर तोहि ध्यांवें वरवीर, तो सौ धीर न हरइ जु पीर। धरि पपीलिका मारग जीव, धीरां धीरां पांवें पीव॥२२॥ मुनिवर पंथ विहंगम धारि, तुरत हि पांव तत्त्व निहारि। धीत अधीत तुही जगजीत, धीजै तोहि जु शुद्ध अतीत ।। २३॥ धीमा धीमां गमन करत, भूमि निरखि जे पाय धरत। ते मुनि सीघ्र सिद्ध पुर गहै, तेरे मत करि तो मैं हैं ।। २४॥ धीठ करम दंडे ते देव, धीधन धीर धरै तुष सेव। धीज पतीज मोह की करें, ते सठ परकति कै वसि परै।। २५ ।। धी कहिये जु वुद्धि को नाम, बुद्धि हु तोहि न पावै राम । वुद्धि परै तू ज्ञप्ति स्वरूप, है चिद्रूप सदा सद्रुप ॥२६ ।। जे हि धीर धी धारै सेव, पांवें चेतन रूप अभेव। धीरजवंत तु ही भगवंत, धीरज धारि भमैं प्रभु संत ॥२७॥ धीस अधीस जु धीसुर तू हि, धुर धर्मनि की एक प्रभू हि। तू हि धुरंधर है धुजवंध, धुतकर्मा तू धरइ न बंध ॥ २८ ॥ धूव तू ही अध्रुव संसार, तो विनु कौंन उतारै पार। धुत्र उत्तपाद व्ययात्रय भेद, त्रिक रूपो तू एक अभेद ।। २९ ।। धू कहिये श्रुति माहि विख्यात, अंग कंघ को नाम जु तात। तू अकंप प्रभु हे जु अपंक, धूर्जे तोतें कर्म जु वंक ३० ।। फुनि धृ भाख्यौ धौत जु नाम, उज्जल तृ हि सुनिश्चल रांम। धू कहिये जु चित्त को नाम, रिधू तू हि मन तै पर राम॥३१॥ धू एकाक्षर माला विघै, नांव भार की परगट लिखै। तू हलको नहि भारौ नाथ, अगुरलधू अति गुणगण साथ ।। ३२ ।।