________________
अध्यात्म बारहखड़ी
१६९
- चौपई - दाग लग्यो मोकौं प्रभृ एह, मलिन महा धारी इह देह। दाह ऊपनौ अति परचंढ, त्रिश्ना को हवो न विहंड ।। २९ ॥ दाह निवार करइ प्रशांत, तू ही एक परम अतिकांत। द्वारौ तर सौ नहि और, द्वारै तैरै दीस दौर ॥ ३०॥ द्वारे तेरे संपति खरी, द्वारे तेरे नौ निधि परी। द्वारी सेवै सुरनरपती, फणपति खगपति अर जतिपती ।।३१।। दाव्यो करमनि दाड्यो अती, करौं पुकार सुनौं जगपती। दाझ्यो हौँ मायानल माहि, दावानल माया सम नांहि ॥ ३२ ।। दाता दै संतोष जु धनां, जा कर तोसौं लागै मनां । दांनी ज्ञांनी तू भगवंत, दारा पुत्र न तेरै संत ।। ३३ ॥ दाढ काल की तैं मुहि काढि, द्राक हमारी भ्रांति जु वादि। द्राक सीघ्र को कहिये नाम, द्राक उधार देहु निज धांम ।। ३४॥ दिगवासा जु दिगंबरदेव, द्विगाधीस द्रिगपाल अछेव । दिमादसौं को एक हि नाथ, दिन दिन अधिक तेज अति साथ ।। ३५ ।। दिन दूलह कमला पति जती, लोकपत्ती जीत्यो रतिपती। द्विजपति कहिये मुनिवरधीर मुनिवदि स्वामी वरवीर ॥३६॥ द्विज़ पंछी द्विज है मुनिशय, द्विज विप्रादि विकुन अधिकाय। द्विज तारक तृ द्विप हु सुधार, द्विविधा हरन भवोदधि पार।। ३७ ।। द्विरुक तन हि तु नवल सुजांन, छिन छिन तेरौं ध्यान प्रान । द्विणुकादिक मिलि लै जष्ट खंध, जड़ खंनि त तृ हि अबंध ॥ ३८ ॥ दिव्य रूप दिव्य ध्वनि खिर, तेरे मुखत अमृत झरें। तोहि दिनेस महेस सुरेस, सेम्स मुनेस जहि अमेस ॥ ३९ ।। द्विपपति कौ पति तेरौ दास, द्विप हस्ती को नाम प्रकास। द्विरद कह द्विपहू बुद्ध कहैं, तेरी चाल न हस्ती लहैं।। ४०॥