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________________ अध्यात्म बारहखड़ी १६७ द्रव्य क्षेत्र अर काल भाव, भावभवा सव भासई। तू अतिभाव क्रिपाल, लाल ललाम जु लोक कौ ॥१०॥ - छंद त्रिभंगी - दपधर जु मुनीशा, शमधर ईशा, यम नियमीसा, तोहि भजें। दरसन गुन धारा, ज्ञान प्रचारा, चरन अचारा, मोह तर्जें। तू है सुदयाकर, अति हि दयापर, शुद्ध सुधातर, लोकपती। दम इंद्रियरोधा, कहइ प्रबोधा, तू अमिरोधा, शुद्ध जती ।। ११ ।। है दत्त दयाभर, दक्ष क्रिपाकर, दृढकर दृढतर, ज्ञानमई। है दरसन जोग्या, अमर अरोग्या, हरइ अजोग्या, शुद्ध दई। तू ही जु दया निधि, धारइ अतिरिधि, करइ महासिद्धि, ज्ञानदसा। दशलक्षण धारा, मुनि मतवारा भजहि अपारा, चरनवसा।।१२।। - सोरठा - दवीयान अतिदूर, दृढीयान अति निकट तू। घट घट मैं भरपूर, दग्सन दरमिक दृश्य तृ॥ १३ ॥ दसा भली है नाथ, साथ तवै तेरौ गहै। तू पकरै जव हाथ, नव कैसी चिंता रहै ।।१४॥ दसा जाति मैं हीन, सोऊ तुव भजि उच्च है। जे तोसौं नहि लीन, ते कुलीन हूं नष्टकुल ॥१५॥ दक्षन उत्तर और, पूर्व पश्चिम चउ दिसा । चउ विदिसा को मौर, अध ऊरध को मूरधा ।। १६॥ दक्षिणा देय अनंत, ददा सवौं का एक तू। अतुल्ल दरव को कंत, दगादार पांवें नहीं ॥ १७ ॥ दगड़ा लूटें जेहि, दगा दगी हिरदै छ । परै नरक मैं तेहि, तोहि न पावें पाप धी॥१८॥ दत्तव तेरौ सौ न, तीन लोक मैं और के। सठपन मेरौ सौ न, तोहि ध्याय रोर न हरयो ।।१९।।
SR No.090006
Book TitleAdhyatma Barakhadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal, Gyanchand Biltiwala
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages314
LanguageDhundhaari
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size3 MB
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