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________________ १६६ दोहा थोथी जग की भूति इह, सो न विभूति कदापि । तेरी सत्ता शक्ति जो, सो दौलत्ति उदापि ॥ ४० ॥ इति थकार संपूर्णं । आगें दकार का व्याख्यान करें है । 4 श्रीक दयामयं सुदातारं, दिनाधीशेश्वरं विभु । दीनबंधुं जगद्वंधु, दुष्ट कर्म निवारकं ॥ १ ॥ अध्यात्म बारहखड़ी दूषकं पाप भावानां देह गेहादि वर्जितं । द्वैताद्वैत विनिर्मुक्त, दोष मोहादि दूरगं ॥ २ ॥ दौर्जन्य रहितं शुद्ध, बुद्धं दंड निवारकं । द: प्रकाशं चिदाकासं वंदे देवं सदोदयं ॥ ३ ॥ - 1 सोरठा दयौ न मोपैं कांम, दले न मैं कोयादि जे । तूहि उधारे राम, सम्यक भाव लखाय कै ॥ ४ ॥ — दर्भ समान कठोर, तीखे रागादिक महा । अति दलबल छल जोर, मोहि भर्माया जगत में ॥ ५ ॥ दल मेरे ज्ञानादि, दले डारि तनु जंत्र मैं । दुख दीयो प्रभु वादि, इनकों मैं न विगारियो ॥ ६ ॥ दझयो लोभ की लाय, शांत भाव पायो नहीं । धरी अनंती काय, राय अबै निज बोध दै ॥ ७ ॥ सिरै । द्रव्य प्रकाशक देव, सव द्रव्यनि मैं त्तू दै दयाल निज सेव, दया करो प्रभु दीन परि ॥ ८ ॥ द्रव्य स्व गुण परजाय, भेद अभेद विभासई । तू त्रिभुवन को राय, पाय परें तेरै मुनि ॥ ९ ॥
SR No.090006
Book TitleAdhyatma Barakhadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal, Gyanchand Biltiwala
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages314
LanguageDhundhaari
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size3 MB
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