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अध्यात्म बारहखड़ी
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थोरोकु लहू तोहि, भजें कदापि निपाप है। सब मैं तोहि जु टोहि, करूणा धरि सुभगति वरै।। ३५ ।। थौ तू ही जिननाथ, अमित काल पहली प्रभू। है रहसी जगनाथ, नित्य निरंतर देव तू॥३६॥
. सत्रैया - ३१ - थंभ एक लोक तीन की तु ही अनंतनाथ,
थंभे से अनंत भाव थंभै तू उपाधि तैं। तैं ही थंभे दुष्ट धिष्ट कर्म मोह आदि देव,
तू ही एक टार ईस सवै आधि व्याधि तैं। तृ ही एक थांघ और थांध नाहि दीसै कोऊ,
तु ही थिर थापै तात तार जु असाधि तैं। जल थल मांहि एक तेरौई अधार धीर, और कोड़ थंभै नांहि भव असमाधि लें ॥३७॥
. सोरठा - थथा पासि दु सुन्य, वारम मात्रा बुध कहैं।
तू देवा अति पून्य, अतिमात्रो सव मात्र मैं ।। ३८ ॥ अथ द्वादश मात्रा कवित्त एक मैं ।।
- सवैया - ३१ - थन रूप देव तू हि, थाघ तेरी लहै तू हि,
थिरता अपार नाथ, श्रीजै न पघर ही। थुति तेरी करै देव, थूणी लोक की सु सेव,
थेई ऐई तत्त करि नाचें सुर नर हो। थै प्रकास है अनास, थोक को धनी सुपास,
भोथी वात नाहि कोऊ, गुन थोक धर ही। थो तुही रहे तुही हि, है तुही हि थंभ लोक,
थः प्रभास ज्ञान रास पाप नास कर ही।। ३९ ।।