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अध्यात्म बारहखड़ी
- -- सबै बा ३१ - थेई थेई तत्त करि नां. इंद चंद तेरे,
___ताल लय नाद करि तोही कौ जु गांवही। नारद हू कंधे धरि वीन अति सुंदर जो,
____ अति ही उछाह करि तो ही कौं जु ध्यांवही। शची आदि देवी सहु तोही कौं अलापैं नाथ,
अहमिंद औ जतिंद तो ही कौं जु भांबहीं। चक्री अधचक्री हलि मनु मुनि संकर जु,
सुर नर नाग खग तोकौं सिर नांवहीं ।। ३१ ।। थेथी वात करें ते न पाबैं तोकों काहू काल,
तेरै कोऊ थेथी वात हेरें हू न पाइए। तोहि लहैं, पंडित विवेकी परवीन नर,
शेशी बुद्धि तयागि एक नोही जु नाइट . थै सुमात्र अष्टमी प्रकासै तृहि और कौंन
थोक धार तू ही एक सोहि सिर नाइए। थोक हैं अनंत गुन भाव परजाय तेरे,
थोकनि को नायक तू हि उर लाइए ।। ३२ ।। थोथी भूति त्यागि औं उपाधि सव त्यागि नाथ,
त्यागि सहु साथ मुनि ध्यां3 तोहि देव जी। थोक तोमैं माय रहे जीव ओ अजीव सव ।
भव्यनि को तारक तू देहु निज सेव जी। थोथी बात कियें तू न आवै कभी हाथ नाथ,
धारि तुव धार नाहि पावै तुव भेव जी। थोरी औ वहुत तेरी साधु ही पिछां. वात और नांहि जानै तात, तेरौ है न छेव जी ॥३३॥
- सोरठा - थोरी बहुत कछून, मैं मूढै भगति जु करी। थोरी सर अति नून, सो तन पोख्यो अघमई ।। ३४॥