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________________ अध्यात्म बारहखड़ी न्यारी होय न नाथ सौं, नाथ हि को बह रूप। • भाषा र सो :.., सन वा अनूप ॥८६॥ जल तरंग दुविधा नहीं, भानु रस्मि नहि भेद । तैसे कमला हरि विषै, श्रुति गावै जु अभेद ॥८७॥ रत्न रलद्युति भेद नहि, ससि अर जौन्ह न भेद। तैसे चेतन चेतना, एक हि रूप अभेद ।। ८८ ।। पुरुष न नारि कदापि जे, वस्तु अमूरत शुद्ध। चिनमूरत चैतन्य जे, देवी देव प्रबुद्ध ॥८९॥ सब घटमंदिर में प्रभु, सदा वसैं निज रूप। विरला दरसन पावई, सम्यग्दृष्टि अनूप ॥२०॥ रमैं सकल मैं धीर जो, महावीर गंभीर रमता राम विराम सो, रमा रमण वर वीर॥९१ ।। सुर नर असुर सुखेचरा, चारण चित्त हरेय । अति अभिराम सुधाम सो, राम नाम जग ध्येय ।। १२ ।। सब क्षेत्रनि मैं रमि रह्यौ, क्षेत्रपति भगवान। क्षेत्री क्षेत्रनिधान जो, अत्ति क्षेत्रज्ञ सुजांन॥९३॥ सिद्धक्षेत्र को नाथ जो, सव क्षेत्रनि को नाथ। क्षेत्र कहावै देह हू, जाकै देह न साथ ।। ९४॥ असंख्यात परदेस जो, वस्तु तनौं विस्तार। सो जिन को निजक्षेत्र है, नित्यानंद विहार ।। ९५ ।। परक्षेत्र जु परद्रव्य हैं, जड़ चेतन बहु रूप। मूरत और अमूरता, नित्य अनित्य स्वरूप ॥ १६॥ लोक मांहि सब पाइए, न हि अलोक मैं कोय। तहां अकेली गगन ही, क्षेत्र अनंती होय॥९७॥ लोकालोक समस्त ही, अवलोकै भगवान। राखै अवगम उदर मैं, ज्ञायक परम सुजांन॥९८ ।।
SR No.090006
Book TitleAdhyatma Barakhadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal, Gyanchand Biltiwala
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages314
LanguageDhundhaari
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size3 MB
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