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अध्यात्म बारहखड़ी
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डक्का हू को नाम है, डकारांक जग मांहि । डक्का तेरौ जगत मैं, और जु डकर नाहि ।।४।। ते डकार परगट कियो, तेरे नांहि तुकार। डरहर निडर अनादि तू, तोमैं नाहि विकार॥५॥ डग हू चलै नहिं स्वस्थ तूं, सर्व विहारी देव। डक नहि तू जु अडंकिता, दै दयाल निज सेव॥६॥ डरै न काल कराल तें, तेरे दास नचिंत। कौंन कमी जिन के प्रभू, पायो तो सभ मित॥७॥
- बसंत तिलका छंद - माया गिनी अघ सनी भवि . जु कैसी,
मांटी इला जुतमला अति निंध तैसी। डारै सबै हि परपंच सुभक्ति धारें,
तारै प्रभू अपनपौ भव भोग डारै॥८॥ कालोहि कालभुजंगो न डसै जु ताकौं,
पीवें पियूष प्रभू नाम स्वरूप जाकौं। डाका पर न जम किंकर को तिनौ कौं,
चालै न मंत्र रति डाकनि कौं जिनों को॥९॥ नाही डरै जु डरतें न हि दास डहकैं,
तोकौं जु ध्याय मुनिराय कभी न वहकैं। जीवा परे जु जमा डाह महैं प्रभू जी,
तेई बचैं जु नहि तोहि तजै कभू जी ।। १० ।। नाथा जु चित्त इह डाकत ही फिरै जी,
मोपैं कभी जु इह चित्त नहीं घिरै जी। तैरै विहार नहि सर्व लो जु देवा,
रोकैं मनां मुनि तिके हि धरै जु सेवा॥११॥